कुटुंब का आधार-पिता

*कुटुंब का आधार-पिता*

माँ अगर घर की धुरी है
तो पिता आधार है 
उसके कंधों पर होता
पूरे कुटुंब का भार है

उसकी मेहनत और लगन से
ही घर परिवार चलता है
बिन कहे ही जो सबकी 
खुशियों का ख्याल रखता है

ऊपर से भले ही सख्त दिखे
पर दिल उसका एकदम नर्म है
अंतस में तूफान छिपाए रहता
जानता वो सबका मर्म है

कभी हँसी तो कभी अनुशासन है पिता
कभी मौन तो कभी भाषण है पिता
माँ अगर रसोई की रानी है...तो
जिससे घर चलता है,वो राशन है पिता 

पिता बच्चों के भविष्य हेतु
निज रातों का चैन खोता है
बेटी की विदाई पर पिता 
छिप छिप कर रोता है

पिता निज संतान को सक्षम 
और लायक बनाए
संतान का भी कर्तव्य है कि
वो भी उनके प्रति ज़िम्मेदारी उठाए।।

*वंदना सोलंकी मेधा*©
नई दिल्ली

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