पितृ दिवस पर रितु प्रज्ञा जी की रचना

दिनांक:-21-06-2020
विषय:-पिता
विधा:-कविता

धैर्य की कलकल बहती धारा हैं पिता,
भाव विह्वल से भरा आदर्श है संजीदा।
सच्चे मार्ग अग्रसर करते बनकर पथप्रदर्शक,
उनकी वाणी है मूलभूत अनुकरणीय सार्थक।
बिन कहे सब माँगे करते पूरा,
मुस्कान संतानों की होठों देख करते सपना पूरा।
कभी न छोड़ते कल,परसो पर कार्य अधूरा,
सदा विरोध करते नशीली पदार्थ तंबाकू, गुटखा, मदिरा।
पाठ पढाते परिवार में भाईचारा का
रहते हरपल तैयार करनी भलाई असहाय, बेचारा का
परिवार को प्राप्त होती उनसे सुखद अनुभूति,
राष्ट्र हित सेवा में विलंब किए बिना देते स्वीकृति।
                 रीतु प्रज्ञा
             दरभंगा, बिहार
       स्वरचित एवं मौलिक

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