कमांडो

सौ सौ कोस यूही पैदल चलने वाला।
मेहनत के आग में तपकर लोहा बनने वाला।
युही सहज नही वह कमांडो बन जाता है।

वह कमांडो बनने से पूर्व ख़ुदको को
 मार नए रूप में ढल जाता है।
 देश पे ना संकट आये इसलिए अपनी 
आधी जिंदगी पहाड़ो में,जंगलों में बिताता है।
तब साथ में कोई नही उसका जज्बा काम आता है।

 कंधे पे बन्दूक रख दिल में तिरंगे को सजाता है।
उसके लिए सिर्फ वतन की रक्षा करना 
सर्वोपरि है इसलिये सरहद पे जान खपाता है।

भले सब ले ले दुश्मन क्यारता से चुपके चुपके
 किन्तु वह खाली हाथ ही खूंखार शेर बन जाता है।

दूर से देखने पर आम आदमी दिखता है किंतु 
समय पे मुशीबत आने पे बन अजगर निगल जाता है।

कमांडो बनने के लिये बहुत कुछ खोना पड़ता है
 तब जाकर एक कमांडो देश को मिल पाता है।

कमांडो जबतक जीता है तो सिर्फ तिरंगे के
 खातिर जब जान की आहुति देता है 
तो भी तिरंगे में लिपट कर आता है। 

इनके लिए राजनीति करना 
भाषणबाजी करना नही होता है।

ये वो शिवतांडव करते है कि दुश्मन
 डर से अंदर तक काँप जाता है।
प्रकाश कुमार
मधुबनी बिहार

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