योग साधना

विषय -योग साधना

योग का अर्थ जोड़ना होता है, आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की प्रक्रिया अध्यात्म में योग कहलाती है। योग जहाँ हम स्वयं को पहचान, दिव्य सत्ता से एकाकार करने हेतु चेतनात्मक साध्य को साधना कहते हैं।

योग अध्ययन की भाँति है जो एक दिन में नहीं साधी जा सकती, निरंतर साधना और सतत अभ्यास से ही हासिल हो सकती है ।

योग साधना में शारीरिक और मानसिक क्रियाएँ होती है ,जिससे चेतना का परिष्कार होता है।

शारीरिक योग में आसन, प्राणायाम, मौन व्रत, बंध, उपवास ,नेति ,धेती, प्राणायाम, हठयोग, आदि उपचार है। मानसिक उपासना में जप,ध्यान स्वाध्याय ,सत्संग ,एकाग्रता ,नाद-साधना आती है। इन दोनों का मकसद एक ही है ,आत्मिक प्रगति करना, विचारों को परिमार्जित करना।

पहले तन को सुरक्षित और स्वस्थ करना फिर स्वस्थ मन में सत् संकल्प और सत् विचारों का बीजारोपण।

योग व्यक्ति के कल्याण और आत्मा उन्नति की नींव है जो सहयोग, शांति और बंधुत्व की विरासत पर आधारित प्रक्रिया है ।

भारत शिव महायोगी और योगेश्वर कृष्ण की भूमि है।

चित्त की वृत्तियों पर नियंत्रण ही योग साधना है। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग की महिमा बतलाई थी, यम, नियम ,आसन ,प्रत्याहार ,धारणा, ध्यान और समाधि । इन आठ नियमों पर चलकर अभिष्ट सिद्धि प्राप्त की जा सकती है ।

प्राचीन काल में हमारे ऋषि -मुनी शरीर को  छोड़कर आत्मा के द्वारा चहूँ लोक यात्रा कर लेते थे।

आधुनिक जीवन की भागदौड़, तनाव ,क्रोध, चिंता अवसाद, चिड़चिड़ापन को योग साधना के द्वारा ठीक किया जा सकता है। प्राणायाम के द्वारा स्वास्थ्य लाभ पाया जा सकता है ,क्योंकि इसके द्वारा श्वसन और पाचन प्रणाली ठीक हो जाती है।

योगासन में विभिन्न मुद्राओं का संयोग है शरीर के हरेक भाग को स्वस्थ रखने के लिए अलग-अलग आसन बताए गए हैं।

योग के द्वारा स्फूर्ति, आनंद ,उल्लास का संचार होता है । स्वस्थ शरीर और मन परिष्कृत होता है।

अंशु प्रिया अग्रवाल 
मस्कट ओमान
स्वरचित 
मौलिक अधिकार सुरक्षित

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ