स्वरचित एवं मौलिक काव्य रचना
पूर्णतया भारत मां को समर्पित
शीर्षक :- भारत भूमि
यह वो भारत की भूमि है,
जहाँ मानव बन भगवान चले।
यहाँ उन दिशाओं का आँचल है,
थे पग जिनके चहुं ओर बढ़े।।
इस भूमि में तपकर ही,
ऋषियों ने था सब ज्ञान रचा।
उस ज्ञान कर्म के बल पर ही,
भारत एक दिन गुरु विश्व बना।।
यूँ तो विश्व धरा पर है,
पर अपनी धरा निराली है।
भारत के सुगम धरातल पर,
हर दिन एक नई दिवाली है।।
था भारत को प्रेम, प्रेम से,
यह इतिहासों ने बतलाया।
उदार ह्रदय भ्रातृत्व प्रेम का,
विश्व को पाठ था सिखलाया।।
हुए अनेक बलवान विश्व में,
मद की लहरों में इठलाते।
किंतु धरा के हर बिंदु पर,
विद्वान लोग ही पूजे जाते।।
इस भूमि की पावनता पर,
क्या? होता है विश्वास हमें।
यह दिव्य धरा है अनंत काल से,
क्या? होता है आभास हमे।।
है नहीं विश्व में कोई स्थल,
जहाँ भूमि को माँ कहते।
पावनता की इस भूमि को,
हाथ जोड़ हम भारत माँ कहते।।
इस भूमि के उऋण में मैं,
कर्म पथों पर बढ़ जाऊँ।
जम्म लिया जिस भूमि पर,
उसमें ही समा बिखर जाऊँ।।
इस भूमि पर जन्में हैं,
जिसपर हमें गर्व होता है।
है धन्य! देव यहाँ जन्म दिया,
जहाँ नित नूतन प्रकृति पर्व होता।।
विष्णु चारग , छात्र जीवन
अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष IT प्रकोष्ठ
बदलाव मंच
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