जीत की शाब्दिक श्रद्धांजलि

शीर्षक - जीत की शाब्दिक श्रद्धांजलि

मोहब्बत ने मोहब्बत को मोहब्बत से गुलाब दिया,
तो कोई गुलाब मोहब्बत में शहीद हो गया।
आसमां भी इस क़दर रो दिया कि
बादलों ने भी बारिश करके शहीदों का कर्ज़दार बना दिया।।

मुझे बता दो सुकून मिलेगा कैसे
जब सुकून से सुलाने वालों की अर्थी पर तिरंगा लिपटा हुआ है।
आधे इंच-ए-शव का माँ लेगी कैसे
जब आधे इंच कम में बेटा आर्मी में नहीं हुआ है।।

उस पत्नी की वेदना को मैं शब्दों में ढाल नहीं सकता
बेटों और बेटियों की चीख़ों को कविता में पिरो नहीं सकता।
जिसकी अर्थी को उठाने वाला सहारा ही छिन जाये
उस बाप के आँखों के तारों को मैं जहां में ला नहीं सकता।।

कब तक यूँ शहादत देनी पड़ेगी
कब तक यूँ ख़ून के आँसूओं की नदियां बहेंगी।
काश! कुछ ऐसा हो जाये वतन में मेरे मौला
आतंक करना तो दूर सोचने से भी रूह कांप उठेगी।।
© जितेन्द्र विजयश्री पाण्डेय "जीत" प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

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