जब कोई पुरुष पिता बनता है....

जब कोई पुरुष पिता बनता है....

 मस्तीयो की महफिल त्याग कर
घर जल्दी जाने का जिद करता है
ख्वाबों को अपने दरकिनार कर
जिम्मेदारियों को सहलाने लगता है
जब कोई पुरुष पिता बनता है....

बच्चों को सबसे महंगा तोहफा बताकर 
मंद मंद मुस्कुराने लगता है
हर वक्त क्रोध में रहने वाला पुरुष
पिता बनते हैं खिलखिलाने लगता है....

घड़ी  परफ्यूम का त्याग कर
तमाम खिलौने घर में सजाने लगता है
कभी हाथी तो कभी घोड़ा बन कई किरदार निभाने लगता है
जब कोई पुरुष पिता बनता है....

तमाम बहस को जीतने वाला
बच्चों से बहस में हारने लगता है
ऊंची आवाज किसी की ना सुनने वाला
पीटीएम में सिर झुकाकर डांट खाने लगता है
जब कोई पुरुष पिता बनता है.....

आस्था पर रत्ती भर भी विश्वास ना रखने वाला
बच्चों की सलामती के लिए
अगरबत्ती दिखाने लगता है
जब कोई पुरुष पिता बनता है....

आलस पन की हर हदें पार करने वाला
हर रोज पसीने से नहाने लगता है
मुट्ठी में खुशियों की मिठाई
बच्चों के लिए हर शाम लाने लगता है....
जब कोई पुरुष पिता बनता है....

क्रिकेट वाले दिन चैनल एक पल के लिए ना बदलने वाला पुरुष
पिता बनते ही छोटा भीम और डोरेमोन देख ठहाके लगाने लगता है
जब कोई पुरुष पिता बनता है.....

बच्चों के वर्तमान और भविष्य को सुरक्षित रखने के खातिर
मेहनत कर आसमां की सीढ़ियां बनाने लगता है
बच्चों के ख्वाबों को पंख लगाकर
आसमा के सपने दिखाने लगता है
जब कोई पुरुष पिता बनता है...

पिता बनते ही एक पुरुष
बच्चों की खुशियों के खातिर
जिम्मेदारियों को सहलाने लगता है
अपने हर ख्वाब को दरकिनार कर बच्चों के सपने सजाने लगता है
पिता बनते ही एक पुरुष मंद मंद मुस्कुराने लगता है...
जब कोई पुरुष पिता बनता है....

                         रंचन  कुमारी
                    रांची झारखंड

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