नित उठी प्रातः पिता पद शीश नाइये

नित उठी प्रातः पिता पद शीश नाइये 
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पूज्य पिता का पावन चरण सुतीर्थ धाम, 
नाम यश, उत्थान, उत्कर्ष हर्ष दाता है। 
श्रद्धा स्नेह, प्रेम नेम से नित सेई सदा, 
स्वर्ग सुख शान्ति जन -जन जग पाता है। 
कहे रामायण गीता भूले ना कदापि पिता, 
पुराण वेद शास्त्र सुश्रेष्ट बतलाता है। 
पालन पोषण प्यार देके "कवि बाबूराम "
बन सद्गुरु सब कुछ सिखलाता है। 

खुश रखने से पूज्य पिता मानस को, 
खुशियों से घर -परिवार भर जाता है। 
रह अनुशासन में जीवीत पिता के सदा, 
शुभाशीष सरस अनन्त सुख पाता है। 
करता अनादर उपहास तिरस्कार जो, 
बने नरक गामी ना चैन क़भी पाता है। पामर पतित उसे मान "कवि बाबूराम "
नित अहा! पिता का दिल जो दुखाता है। 

त्यागिये ना भूल से भी पूज्य पिता चरण, 
राग अनुराग चरणन में बढा़इये। 
पिता के रिण से उरिण होना मुश्किल है, 
सुचि उपकार प्यार मत भूल जाइये। 
पिता के तुल्य ना अमुल्य कुछ दुनिया में, 
धूल ले चरणन का फलिये -फूलाइये। 
करबध्द "कवि बाबूराम "कहे सबही से, 
नित उठी प्रातः पिता पद शीश नाइये। 
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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508
मो0 नं0-9572105032
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