सीमा गर्ग मंजरी जी की कविता 'मेरे पिता'

मेरे पिता

शांति सौम्यता का सत्य दर्पण हैं ,
कर्तव्यनिष्ठ सजग आचरण हैं!
सहयोग सद्भाव की प्रतिमूर्ति हैं,
दयालु कठोर तप की मूर्ति हैं !
उनके अंश से जीवन मैंने धारा है ,
मेरे पिता हृदय की ज्ञान धारा हैं !

प्यार दुलार का मीठा दरिया हैं,
बांहों के झूले में स्नेह कडियां हैं !
शीतल मन्द सुगंधिम बहारें हैं,
रिमझिम बरसा की मृदु फुहारें हैं!
स्नेहिल बर्षा से मुझे निखारा है ,
मेरे पिता हृदय की ज्ञान धारा हैं !

चंदा की शुभ्र ज्योत्स्ना से मनभावन ,
रवि की स्वर्णिम उर्मियों सेअति पावन!
पुलकित यामिनी सी शांति लिये ,
नवल भोर सी उज्जवल कांति ले!
नूतन तूलिका से गुणों को उभारा है !
मेरे पिता हृदय की ज्ञान धारा हैं,

विस्तृत गगन सा दिल विशाल है ,
रखें बच्चों को हरपल खुशहाल हैं !
खेल खिलौने में झलके प्यार है,
खुशियों से महके घर संसार है!
कमर्ठता से उनके चलता गुजारा है ,
मेरे पिता हृदय की ज्ञान धारा हैं!

✍ सीमा गर्ग मंजरी
 मेरी स्वरचित रचना
 मेरठ

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