विषय - माँ भारती
दिनाँक - २१-०६-२०२०
विधा - मुक्तक
१-धरा अनूप, अनुपम, सुजलाम, सुफलाम भारत की;
वीरांगनाएँ बच्चियाँ नारीं सब भारत की ;
करूँ क्या क्या बखान और क्या संज्ञा दूँ मैं इसको??
माँ भारती शोभा है, आत्मा है भारत की....
२- हैं रूप अनेक, अनेक सत रज तम की मूर्ति;
है विद्या अन्न धन और लेखनी की पूर्ति;
सुरेश्वरी स्वर साधना से राग यों रचें;
ज्यों शब्दों के आभूषण और श्रृंगार मूर्ति....
३- बेटे भी बलिदान में देती है गर्व से,
सिन्दूर बेटियों का भी देती है गर्व से,
वे भूमि के टुकड़े को खेलें होली लहू की,
वो रक्त, मेंहदी, माँग भी देती है गर्व से....
४- मधु,कैटभ, चण्ड और मुण्ड, तुच्छ नाम हैं;
असुर दानव इनसे डरती ये आवाम है;
ले रूप चण्डिका का , कालिका , किया संहार;
ऐसी छवि को दास मेघा का प्रणाम है....
-- मेघा जोशी
खटीमा, उत्तराखण्ड।
0 टिप्पणियाँ