बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु ग़ज़ल
प्रारुप:-स्व:रचित एवं मौलिक
बदलाव मंच चित्रात्मक काव्य सृजन सह विडियो काव्य
चित्र क्रमांक:- 07
नाम:- डॉ. लता, नई दिल्ली
विषय:- ग़ज़ल
मासूम लड़कियों को तेज़ाब से जलाने वालों के ख़िलाफ़ किसी लड़की का विद्रोही स्वर एक ग़ज़ल के रूप में प्रस्तुत है-
बदले की आग में जलके यूँ अक्सर मैंने पाई खूब रुसवाईयाँ हैं
आँखों से अब मेरी निकलती खूनी चिंगारियाँ हैं
सुनकर न घबरा जाना तुम ओ सुनने वालों
जो बताती हूँ तुमको ये ज़ुल्मी कहानियाँ हैं
आई हूँ सुनाने दास्तां आपबीती
इसके अल्फ़ाज़ भी मेरी ही ज़बानियाँ हैं
कुछ खुदगर्ज़ लोगों ने मेरे मासूम से चेहरे पर
दे दी अपनी गंदी सोच की निशानियाँ हैं
दमकता चेहरा और बिखरे बाल चुप हो गए हैं लेकिन
हया छोड़ चुकी मेरी नजरों की भी कुछ बयानियाँ हैं
शर्म न आई उनको इतना सब करके भी
अब डर से काँपती मेरी रूमानियाँ हैं
ख़ौफ़ ख़ुदा का नही डराता मुझे ऐ बन्दे
अब तो डराती मुझे मेरी परछाइयाँ हैं
ढूंढती हूँ उन ज़ुलमियों के डेरे
जो औरों की राख़ पर बनाते अपने आशियां हैं
जी करता है मिटा दूं सारे ज़ालिमों को अपने जुनूं से
रुकी हूँ सोचके ये कि अभी बाकी ख़ुदा की खुदाईयाँ हैं
डॉ.लता (हिंदी शिक्षिका),
नई दिल्ली
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