आज भी गांव........

आज भी गांव........

क्या ऐसा ही रहता है, इसको ही गांव कहते हैं......
जहां लोग आपस में ही जातिवाद करते रहते है.....
जहां लोग जाति के नाम पर बेवजह खून बहाते हैं.....
 जहां जरूरतमंदों को मदद करना तक नहीं चाहते हैं....
जहां लोग ऊंचा बढ़ाने के बदले गड्ढे में ही गिराते हैं...... 
जहां आज भी बेबस, लाचार लोग  शोषित होते हैं.....
जहां आज भी गरीबों की कोई परवाह नहीं करते हैं.....
जहां जिम्मेदार लोग अपनी ही रोटी सेकने में रहते हैं.... 
जहां आज भी गरीबों को विकास के नाम पर ठगते हैं...
जहां सरकारी प्रलोभनों के नाम पर खूब पैसे ठकते हैं...
जहां आज मजदूरों को वक्त पर मजदूरी नहीं मिलते हैं.. 
जहां आज भी बाढ़ के आने पर सारा गांव डूब जाते हैं.. 
जहां आज भी लोग फुस के घर में गुजर बसर करते हैं..
 गांव में पेट भर खाने के लिए आज भी लोग तरसते हैं...
जहां इनसब कारणों को किस्मत के दोष को बताते हैं...
©रूपक

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