विष्णु पदी पावन माँ गंगा , शत शत कोटि प्रणाम ।

विष्णु पदी पावन माँ गंगा , शत शत कोटि प्रणाम ।
धरी शीश शिव ब्रह्म कमण्डल , चरण कमल घनश्याम ।।

पुत्र सगर के तारन कारन कपिलाश्रम पधारी ।
वेद पुराण व ऋषि मुनि ने महिमा गाई तुम्हारी ।।
जह्नु मुनि की बाला बन कर नाम किया अभिराम ।..१

मानव का मन उज्जवल कर दो ये गंदगी न फैलाये ।
स्वस्थ रहे तन मन से सब जन सरिता स्वच्छ बनाये ।।
भारत माता की  नश नाड़ी ये नदियां होय ललाम ।.....२

जो जन तुम को मैला करते उनकी बुद्धि जगा दो ।
भरी मलिनता जिनके उर में वहाँ से  उसे भगा दो ।।
अपने सुत को सद् बुद्धि दो जे काम करें निष्काम ।......३

गोमुख से गंगा सागर तक है निर्मल तुमको बहना ।
करें मदद सब भारतवासी बस यही हमारा कहना ।।
तीर्थ तट के निकट नहीं हो अब कोई अनुचित काम।....४

दोहा : गंगा गंगा जो कहें , सत जोजन भी दूर ।
     दूर होय कल्मष सभी , शांति पाय भर पूर ।।१

      पाप होत दश तरह के , विष्णू पदी नहाय ।
      स्वच्छ सदा रखना इसे , माँ ही होय सहाय ।।२

राजेश तिवारी "मक्खन"
झांसी उ प्र
9451131195
मेरी यह रचना स्वरचित व मौलिक है ।

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