प्राकृतिक आपदा – जिम्‍मेदार कौन ?


प्राकृतिक आपदा – जिम्‍मेदार कौन ?

       फैल रही हैं जंगलों में आग
 कहीं सूखा – कहीं भयावह बाढ़
  हो रही जिंदगी के लिए मारामारी
              इसके लिए
 जिम्‍मेदार कौन-जिम्‍मेदार कौन?
  बह रहे खतनाक बर्फानी तूफान 
फंसी हैं अगिनत लोगों की जान
              इसके लिए 
  जिम्‍मेदार कौन-जिम्‍मेदार कौन?

अभी हाल पश्चिम बंगाल में ''अम्‍फान तूफ़ान'', महाराष्‍ट्र में ''निसर्ग तुफ़ान'' में भारी तबाही का तांडव किया, वहीं विगत दिनों दिल्‍ली में 8 बार और जम्‍मूकश्‍मीर, गुज़रात और दिल्‍ली में कई बार भूकंप के झटके महसूस किये गये । प्रकृति के कोप को यही विराम नहीं लगा, इस वर्ष मई-जून में जारी गर्मी के कहर के पूर्व फरवरी के दूसरे सप्‍ताह में ही किन्‍नौर जिले के मोचोरा, तरांडा, रूपी, छोटा-बड़ा कंबा रोकचरंग,  काचरंग के जंगलों में लगी आग से सेव की पैदावार को भरी नुकसान पहुंचा हैं । इसके साथ ही हिमाचल के जंगलों में भी आग लगने की ख्‍बर जोरों पर रही ।  17 अप्रैल तक उत्‍तराखंड के वनों में आग लगने की 17 घटनाएं सामने आई ।
वैसे हम भारतीय इन आकस्मिक आपदाओं को ''दैवीय प्रकोप'' कहते हैं,पर क्‍या यह कहकर ही हम अपने कर्तव्‍यों से विमुख हो सकते हैं ? बिल्‍कुल नहीं, स्‍वयं को निर्दोष करार सिद्ध करने की फेहरिस्‍त लंबी करने के बजाय अपने कर्मो पर गहन  चिंतन कर मूल कारणों को समझते हुए उसके निवारणार्थ स्‍वयं की भूमिका तय करने की अब अत्‍यंत आवश्‍यकता हैं । 

नि:संदेह किन्‍हीं अपरिहार्य कारणों से उत्‍पन्‍न होने वाली उक्‍त्‍ आपदाओं को टाला नहीं जा सकता, पर यदि ये आपदाएं हमारी खराब आदतों, लापरवाही के कारण उपजी हो, तो हमें स्‍वयं अपने जीवन की रक्षा के लिए अपनी बेतरतीब जीवनशैली को लगाम देकर अपनी अंतहीन-स्‍वार्थपरक आवश्‍यकताओं पर नियंत्रण करना अत्‍यंत आवश्‍यक हो चला हैं । 

विडंबना का विषय हैं कि कल-कल करते झरने, झील, नदियां, समुंदर, हरे-भरे वृक्ष और मन-मस्तिष्‍क को उर्जा से सराबोर कर देने वाली शीतल हवा का झोंका हमारे लिए जीवनदायिनी प्राकृतिक-अनमोल उपहार स्‍वरूप हैं । 

जीवन में इनकी महत्‍ता को जानने-समझने के बावजूद आज का तथाकथित शिक्षित समाज बेशकीमती प्राकृतिक उपहारों को पूजकर इन्‍हें सहेजने की परंपरा को अनवरत् जारी रखने के संस्‍कारों को दरकिनार कर अपने आवास  के लिए गगनचुंबी इमारतों का निर्माण करने के लिए जंगलों को काटने पर आमादा हो चला हैं । एक सर्वे के अनुसार दुनिया में प्रतिवर्ष एक करोड़ हेक्‍टेयर इलाके के वन काटे जाते हैं ।  अकेले भारत में 10 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में फैले जंगल कट जाते हैं । प्रतिवर्ष 16400 करोड़ से अधिक वृक्षों की अनुमानित मात्रा में कमी देखी जाती हैं ।  इसका दु:खद परिणाम ''बाढ़ और सूखे'' के विशिष्‍ट चक्र से शुरू होता हैं । साथ ही ग्‍लोबल वार्मिंग, जल संसाधनों की कमी, ओजोन की परत को नुकसान, बेघर हुए पशु जैसी विकराल समस्‍याओं का जन्‍म होता हैं । धरा का तापमान दिन दोगुना-रात चौगुना बढ़ते चला जा रहा हैं, जिसकी वजह से दुनिया के विविध हिस्‍सों में हिमस्‍खलन और जंगलों में आग लगने की समस्‍या का इजाफा होते चला जा रहा हैं । 

शहरीकरण की तीव्रतम प्रवृत्ति के चलते हमने अपने आस-पास की ह‍रीतिमा को समाप्‍यप्राय सा कर दिया हैं । और अब रवि की तीक्ष्‍य रश्मियों के बढ़ते ताप को लेकर चिंतातुर हो चले हैं । ज्ञातव्‍य हो कि हमारे देश के तस्‍कर आये दिन करोड़ों की लकड़ी की तस्‍करी कर विदेशों में बहुमूल्‍य संपदा को बेचने में भी पीछे नहीं हैं ।
 
इस कड़ी में औद्योगीकरण पर विमर्श करें तो पाएंगे कि आजादी के बाद से खनिज उत्‍पादन औद्यो‍गीकरण में कई गुना वृद्धि हुई हैं । विदित हो कि इसके लिए खुली खुदाई और भूमिगत खुदाई की जाती हैं । खनिज की परत तक छेद करके बारूद से उस परत को तोड़ते हैं । इस प्रक्रिया के परिणामस्‍वरूप भूस्‍खलन की समस्‍याओं में इजाफे के साथ ही भूमि, जल, जंगल और हवा दूषित होने एवं उपजाउ भूमि के बंजर बनने की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं । उल्‍लेखनीय हैं कि उद्योगों से फैक्‍ट्री से निकल विषाक्‍त सॉल्‍वेंट्स को नदियों में बहाया जाता हैं जिससे कारण भारत के 50-60 प्रतिशत जल स्‍त्रोत प्र‍दूषित हो चुके हैं । कारखानों से निकला विषाक्‍त धूंआ एवं ग्रीनहाउस गैस आस-पास से रहवासियों में आजन्‍म के लिए कष्‍टदायी प्राणघातक बीमारियों का न्‍यौता दे रही हैं । 
इसी तारतम्‍य में बिना ट्रीटमेंट किये गये पानी के जमावड़े से जमीन की सतह पर ताजे और शुद्ध पानी का प्रदूषण बढ़ता जा रहा हैं । एक अनुमान के मुताबिक एक लाख से ज्‍यादा आबादी वाले शहरों में 16662 मिलियन लीटर खराब पानी एक दिन में निकलता हैं । यहां यह भी उल्‍लेखनीय हैं कि भारत देश्‍ में अकेले मुंबई की कुल आबादी 1 करोड़ 24 लाख 42 हजार हैं और बीस अन्‍य शबरों की आबादी 20 लाख से उपर हैं । ऐसी स्थिति में प्राकृतिक जल स्‍त्रोंतों के शुद्ध जल की कल्‍पना करना भी दिवास्‍वप्‍न की तरह ही हैं । गंगा जैसी पवित्र नदी के किनारों पर बसे शहरों और कस्‍बों में देश का करीब 33 प्रतिशत खराब पानी पैदा होता हैं ।

इस सबके अतिरिक्‍त बायोमेट्रिक और औद्योगिक कचरा की अपर्याप्‍त व्‍यवस्‍था, जहाजों से होने वाले तेल के रिसाव के साथ कुछ धार्मिक आ‍स्‍थायें यथा- पूजा में उपयोग में आये फूलों के निर्माल्‍य और शवों को पानी में बहाने, मेले में पानी में नहाने की परंपरा से पानी दृत  गति से दूषित होता चला जा रहा हैं । ऐसे प्रदूषित पानी को पीने से कॉलरा, टी बी, दस्‍त, पीलिया जैसी भयंकर बीमारियों का  प्रकोप एक साथ पूरे शहर के शहर को अपना ग्रास बना लेता हैं । आंकड़ों पर नजर डालें तो गंदे पानी से उपजी बीमारियों के मरीजों की संख्‍या 80 प्रतिशत हो गई हैं ।

जल एवं जलवायु की उक्‍त समस्‍याओं की वजह से कई बड़ी आपदाओं यथा चक्रवात, बवंडर, तूफान, बादल फटना, लू और शीतलहर जैसी प्राकृतिक आपदाओं का भी उद्भव होता हैं ।  
औद्योगिक विषाक्‍त धुएं और खस्‍ताहाल  व्‍यक्तिगत और सार्वजनिक वाहनों से निकले काले धुएं से प्रदूषित वायु हमें दमे और अस्‍थमा की गिरफ्त में ले जाती हैं । हवा की गुणवत्‍ता और जीवन अवधि में संबंध को लेकर ''विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन'' ने पहली बार इस तरह करने के लिए एक सौ पिचासी देशों को शामिल किया गया । निष्‍कर्षस्‍वरूप पाया गया कि दुनिया में सबसे ज्‍यादा प्रदूषित पंद्रह शहरों में से 14 शहर भारत में हैं, जिनकी हवा में पी एम यानि पार्टिकुलेट मैटर 2;5 की मात्रा सबसे ज्‍यादा हैं । विगत दिनों हमारी राजधानी दिल्‍ली कुछ ऐसी ही भयंकर और जानलेवा विकट स्थिति से गुजर रही थी । ये परिस्थितियां चेतावनी देती हैं कि अगर जल्‍द ही ठोस कदम नहीं उठाएं तो हालात अत्‍यंत विस्‍फोटक हो सकते हैं । जिसका खामियाजा भयंकर बीमारियों के रूप में एक बड़े जनसमुदाय को वर्षानुवर्ष  भुगतना पड़ेगा । 

प्राकृतिक आपदाओं को आमंत्रण देने की फेहरिस्‍त में गैरजिम्‍मेदाराना आदतों में हमारी दिनचर्या का एक महत्‍वपूर्ण अंग बनी पॉलीथिन के प्रयोग को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । आज हमारे किचन में उपयोग आने वाली किराना सामान की पैकिंग, घर के कोने-कोने में किसी न किसी रूप में प्‍लास्टिक के सामान का उपयोग, डिस्‍पोजेबल कप-प्‍लेट्स,  डिब्‍बाबंद खाद्य पदार्थो की पैकिंग में भी पॉलीथिन का इस्‍तेमाल किया जाता हैं । आंकड़ों की मानें तो 1990 में इसकी खपत 20 हजार टन थी जो अब बढ़कर तकरीबन तीन से चार लाख टन तक पहुंच गई हैं । अत: इस यु्ग को प्‍लास्टिक युग कहें तो कोई अतिश्‍योक्तिपूर्ण नहीं होगा ।  इसके प्रयोग, उपयोग और विक्रय पर सरकार द्वारा जुर्माना और जेल का प्रावधान लागू करने के बावजूद हम अपनी आदतों पर अंकुश लगाने के बजाय हम अपने साथ कपड़े के कैरी बेग्‍स साथ में रखने की कवायद नहीं कर पा रहें । घर का बचा खाद्य पदार्थ फेंकने और कचरे को पॉ‍लीथिन में रख नालियों में बहाने में हमें कोई झिझक नहीं होती हैं । हमारी इस लापरवाही से बेजुबां जानवर मारे जा रहे हैं, पानी की निकासी बाधित होने से बाढ़ का खतरा बढ़ता जाता हैं, साथ ही नदियों-समुंदरों में रंगीन पॉलीथिन का जहर घुलने और जलचरों द्वारा इनको निगलने के कारण इनकी संख्‍या में तेजी से कमी आने के साथ ही पारिस्थितिक तंत्र भी प्रभावित हो रहा हैं । हमें संज्ञान लेना आवश्‍यक है कि  रीसाइकल ना हो सकने वाला प्‍लास्टिक एक धीमा जहर हैं, साथ ही रंगीन प्‍लास्टिक उपस्थित जहरीले रसायन मिट्टी / भूगर्भीय जल को भी विषाक्‍त कर देते हैं । प्‍लास्टिसाइजर अल्‍प स्थिर प्रकृति का जैविक (कार्बनिक) एस्‍सटर (अम्‍ल  और अल्‍कोहल से बना घोल) होता हैं ये द्रवों की भांति निथर कर खाद्यपदार्थो में घुस जाते हैं और कैंसर की संभावनाओं से युक्‍त होते हैं । परिणामस्‍वरूप आज भारत ही नहीं, विश्‍व के समस्‍त देशों में दिन-दोगुने व रात चौगुनी गति से कैंसर लोगों को अपने गिरफ्त में लेता जा रहा हैं । 

बेशक ऐसे कई कारण हैं जिनको थाम पाना प्राकृतिक आपदाओं को रोकना हमारे बस में नहीं यथा – समय-समय पर माहामारी के रूप में फैली संक्रामक बीमारियां, बर्ड फ्लू, स्‍वाइन फ्लू, समुद्रों के तापमान में बढ़ोतरी के कारण कही बाढ़ तो कही सूखे की स्थिति निर्मित होना, न्‍यास झीलों की तरह अन्‍य कई झीलों से निकलने वाली दमघोंटू गैसों का उत्‍पन्‍न होना । कई बार एक आपदा अपने साथ दूसरी समस्‍या को भी जन्‍म देती हैं जैसे – भूकंप सुनामी ला सकते है, तूफान से बारिश हो सकती है, और सूखा सीधे तौर पर अकाल व बीमारियां उत्‍पन्‍न करता हैं । पर हमें यह बात बिल्‍कुल नहीं बिसराना चाहिए कि प्रकृति हमारी सौमित्र हैं और उसको सहेजना, देखभाल करना नष्‍ट होने से बचाना हमारा परम धर्म हैं क्‍योंकि उसके बिना धरा पर जीवन संभव नहीं हैं । 
आज के परिप्रेक्ष्‍य पर नज़र डालें तो ''कोरोना महामारी'' के चलते लगे लंबे लॉकडाउन काल में जबकि हम सभी अपने घरों की लक्ष्‍मण रेखा में रहे, सड़कों पर वाहनों, परिवहन साधनों की आवाज़ाही पूर्णत: विराम पर थी,लोगों का पर्यटन स्‍थलों पर आना-जाना बंद हो गया तो ''नदियों के जल का पूर्णत प्रदूषण रहित होना, पर्यावरण में वायु प्रदूषण काफ़ी हद तक कमतर होना और यहा तक कि हिमाचल की चोटी का कई मील दूरी से स्‍पष्‍ट दिखाई देने के के समाचार सुर्खियों में बने रहे । यह समाचार इंगित करते हैं कि प्रकृति अपने रौद्ररूप से हमें अभी आगाह कर रही हैं कि यदि अभी भी हमने अपनी आदतों, व्‍यवहार में सुधार नहीं किये तो वह दिन दूर नहीं जब धरा पर चहुंओर त्राहि-त्राहि का मंज़र मानवजीवन का नामोनिशां मिटाने को आतुर हो चलेगा ।

अंतत: प्राकृतिक आपदाओं के लिए येन-केन-प्रकारेण जिम्‍मेदार तो हम मानव मात्र ही हैं, और बेशक हमारी थोड़ी सी सावधानी, सतर्कता और पर्यावरण संरक्षण के चैतन्‍यता से ऐसी विभत्‍स  और जानलेवा ''प्राकृतिक आपदाओं'' को बहुत हद तक रोका जा सकता हैं । 

अंजली खेर, 
C-206, जीवन विहार
अन्नपूर्णा बिल्डिंग के पास
P&t चौराहा
कोटरा रोड़ भोपाल

            -2-

##अंगदान -एक पुण्यकाम ##

जाति-धर्म-वर्ण से बढ़कर
है मानवता का नाता,,
सच्चा इंसान है वही जो
एक-दूजे के काम है आता,,
 
भ्रान्तियों-मिथकों को दरकिनार कर
ऋषि दधीचि के कार्य को देंगे नए आयाम,,
"अंगदान है महादान", इससे बढ़कर
दान धर्म पुण्य का नही है कोई काम ,,,

जिस व्यक्ति ने किया है अंगदान
मानो उसके तो हो गए चारों धाम ।
एक व्यक्ति के अंगदान 
कई लोगो को मिल सकता जीवनदान
नवजीवन पाने वाले व्यक्ति के चेहरे पर
सज सकती है मोहक मुस्कान ।।

जाते जाते क्यों न हम
खुद को अमर कर जाए
जीवनदान पाने वाले की दुआएं
हम अपने अपनों के नाम कर जाएं ।

मैंने तो अंगदान रजिस्ट्रेशन का
पहले ही भर दिया है फॉर्म,,
क्या इस पुण्य कर्म में लिख दें
अगला आपका ही नाम ???

अंजली खेर 9425810540
C-206 जीवन विहार
अन्नपूर्णा बिल्डिंग के पास
P&t चौराहा, कोटरा रोड़
भोपाल 462 003
म, प्र.


            -3-

"'मैं भारत माँ का बेटा""

मैं भारत माँ का बेटा 
धरती का सपूत हूँ ...
        देश के दुश्मनों के लिये 
        मैं बनता "यमदूत" हूँ ....

माँ से आंचल से दूर हूँ पर 
भारत माँ की गोद मे हूँ ....
        अपनी देश की रक्षा के लिये 
        मैं तो जैसे प्रतिबद्ध हूँ ....

मेरे जीवन का बस यही संकल्प 
मैं माँ के चरणों मे शीशे झुकाऊ ..
       दुश्मन को धाराशायी कर लौटूं 
       या फिर तिरंगे मे लिपटा वापस आऊं ....

कट जाए गर शीश युद्द मे 
हमको कोई भी गम नहीं ...
        दुश्मनों के आगे झुक जाए
        ऐसे कायर तो हम नहीं .....

बस यही कामना हैं मेरी 
माँ का मान हम बढ़ाये ...
        सम्मान पर उँगली उठाये गर कोई ई
       शीश काट उसका माँ के चरणों मे चढ़ाएं ....

अंजली खेर 9425810540
कि-206, जीवन विहार
अन्नपूर्णा बिल्डिंग के पास
कोटरा रोड, भोपाल
462 003 म प्र


               -4-


"आया करोना,,,, मत डरो-ना,,,,"

घर की दहलीज़ में कैद, 
ये जीवन जाने कैसा हो गया,,,
मन का सुख, दिल का चैन
ना जाने कहॉ खो सा गया,,,,,,

       रात आंखों में ही कट जाती
      किसी पल दिन में चैन न आता,,,,,,
    पल-पल बढ़ता "कोरोनो" का आंकड़ा
      दिल को अंतस तक सहमाता,,,,

बेशकीमती जान की हिफ़ाज़त में
कुछ दिन तो घर पर हीं रहो ना,,,,
ये कठिन समय भी गुज़र जायेगा, 
तुम "कोरोना" से मत डरो-ना,,,,

   भीड़भाड़ में ही संक्रमण फैलता
    हाथों के जरिये आंख, मुंह नाक में जाता
    यदि जाना ही पड़े तुमको बाहर तो
  घर आकर हाथ-पांव साबुन से धो-ना,,,,
  बस सावधानी रखों, "कोरोना" से डरो ना,,,,

परिवार के साथ बोलो-बतियाओ
अपने दिल की हर बात कहो-ना,,,
पढ़ो खुद को, कभी तो गुनगुनाओं  
''कोरोना" से बिल्कुल  भी घबराओ ना,,,,,

      सतर्कता, सावधानी, संयम 
     व सुरक्षा के उपायों का पालन करों ना,,,
    इस महामारी से लड़ने ये यही उपाय
    तुम करोना से बिल्‍कुल भी डरो-ना,,,,

समय हैं एकजुटता का
 आपसी मतभेदों में तुम अब पड़ों ना,,,
अंधविश्‍वासों में न पड़कर 
अफ़वाहों का शिकार तुम बनो ना
बस इतनी ही इल्तिज़ा हैं मेरी
कोरोना से तुम घबराओ ना,,,,,
               
 कोरोना जल्‍द ही चला जाएगा
 तुम बस अपने घर पर रहो ना,,,,
 इसे भगाने का बस यही हथियार हैं
 तुम इससे बिल्‍कुल भी ड़रो- ना,,,

अंजली खेर
C-206, जीवन विहार
अन्नपूर्णा बिल्डिंग के पास
कोटरा रोड़ भोपाल

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