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लख चौरासी में महान है मनुष्य योनि ,
कहे वेद ,शास्त्र औ पुराण श्रुति गाय के ।
दर्शनों में मुक्ति का उपाय है सरल यही ,
परम पद प्राप्त होत पाप को हटाय के
आत्मा ,परमात्मा ,प्रकृति ज्ञान जान लेना,
मुक्ति का स्वरूप कहे वेद समझाय के ।
तन ,मन ,वचन से दस पाप कर्म होत ,
प्यारे देत प्रमाण सर्व सम्मत जुटाय के ।
अनावश्यक झूठ ,निन्दा ,कटु वचन पाप है,
इन्ही चार कर्मो से वाणी रखो विहाय के ।
चोरी ,हिंसा ,व्यभिचार तन से होत तीन पाप ,
आत्म निरीक्षण से तन रखो बचाय के ।
पर पीडा़ ,पर व्देष ,पर वस्तु कामना ,
यही तीन पाप होत मन से भटकाय के ।
दस पाप कर्म छोड़ इंद्रियां विषय से मोड़ ,
कामना मरोड़ प्यारे सत्य में समाय के ।
दुर्लभ मनुष्य तन स्वांसा न जाए निकल ,
मृत्यु भी है अटल लख औ लखाय के ।
बदल जाते अन्तःरंग प्राप्त कर सत्संग ,
सदगुरु चरणन में शीश को झुकाय के।
सत्य "बाबूरामकवि "कैवल्य पद प्राप्त होत ,
स्वतः के अन्तः गहराई में जाय के ।
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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज ( बिहार )841508
मो0नं0 - 9572105032
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾*************************1पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार।परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।।होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण,यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।*************************2गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल।इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।।जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना,निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना।कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा,करती भव से पार, सदा ही सबको गंगा।*************************3जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार।है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।।सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में,वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में।कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग,निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग।*************************बाबूराम सिंह कविग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032*************************मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित।हरि स्मरण।*************************
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