मानस - महिमा

🌾मानस - महिमा 🌾
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मानस महा सुखद रत्न मानव धर्म का ,
सत्कर्म सुचिता का श्रेष्ठतम विधान है ।
आदर्श पिता पुत्र ,पति ,मित्र बन्धु बान्धव ,
आदि रिश्ताओं का सु शिक्षा प्रावधान है ।
पावन प्यार सदाचार व्यवहार पीयूष ,
चारों  वर्ण  आश्रम का अक्षय वितान है।
प्रीति रीति नीति का अनूठा सत्य सार कुंजी ,
लख "बाबूराम कवि "मानस प्रधान है ।

भक्ति भलाई नेकी दान में उत्थान चाव ,
करने कराने वाला सर्व  हितकारी है ।
मानवता सूर्य माधुर्य विवेक नम्रता का ,
सील सदभाव स्नेह श्रध्दा  पिटारी है ।
पाप त्रयताप अज्ञान दुःख दारिद तम ,
काल विकराल जगजाल  भयहारी है ।
जन मनबोध सु शोध सुख  शान्ति का ,
बाबूराम मानस महान  गुणकारी है ।

गति मति प्रगति प्रभुभक्ति अतुल शक्ति ,
सुचि जन - मानस  में भरता रामायण ।
काम -क्रोध ,लोभ -मोह क्षोभ व्देष कटुता ,
सुधा  बन पल - पल हरता रामायण  ।
जन्म जीवन उभयतः सार्थक बना शीध्र ,
पार  भव सागर से  करता रामायण ।
स्वर्ग मोक्ष मुक्ति कैवल्य भी क्या चीज उसे ,
कवि बाबूराम जो भी  पढ़ता रामायण ।

पामर पतित जन कुटिल कुकर्मी भी ,
मानस ज्ञानोदधि में गोता  खाके तरता ।
अबला ,अनाथ दीन दुखिया सनाथ होत,
कोटिक  असंख्य जन गिरते  सम्भरता ।
आदर से आत्मसात करता रामायण जो ,
निश्चय  ही नियत  नजर  से  सुधरता ।
महिमा महान रामनाम सु रामायण का ,
सबही का बाबूराम  कायाकल्प करता ।

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बाबूराम सिंह कवि 
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर 
गोपालगंज  (बिहार )841508
मो0नं0 - 9572105032
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
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                     1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
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                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
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                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
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मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
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