चुलबुली दादी

चुलबुली दादी - लघुकथा

दोपहर का समय था सब अपने अपने रुम में सो रहे थे , मेरी दादी को दादी को नींद नहीं आ रही थी टीवी पर " सी . आई , डी " बहुत देखती है नींद आती नहीं है आज मुझे भी नहीं आ रही थी सोचा दादी के साथ हाल में पीक्चर देखती हूँ , लाकडाऊन की वजह से क्या दिन क्या रात कुछ समझ ही नहीं आता । मैं सोच ही रही थी की बेल बची दादी बोली कौन आया है , कोई जवाब नहीं दादी ने मास्क लगाया चश्मा टीक किया व दरवाजा खोल सेफ़्टी डोर में से देखा तीन चार लड़के , उन्हें दाल में काला लगा
बोली क्या है बेटा , मुझे खाना देने आयें हो ,
कौन सा खाना कैसा खाना ,
चल दरवाजा खोल जल्दी तिजोरी की चाबी दे , हमें कल गांव जाना है , पैसों की सख़्त ज़रूरत है,
अब दादी का "सी आईं डी "दिमाग़ की घंटी बजी
बोली बेटा कौन सी तिजोरी ,
मुझे तो यहाँ कोरोटाइंन किया है
घर के बेटा बहू अस्पताल गये है
बच्चे नाना के घर पैसा रुपया सब ले गये मैं पैसे का क्या करुगी नाश्ता खाना रोज़ लाकर देते है , मेरे पास पैसे होते तो तुम्हें यू ही दे देती , खो खो खो ..
फिर कुछ देर बिमारी का नाटक कर बोली , तुम्हे चोरी थोड़ी करने देती , मुझे "कोविड 19 "
के कारण बहुत परेशानी है तुम लोग बहार ही रुको थोड़ी देर में गाड़ी आयेगी खाना लेकर उनके पास होंगे तो दिलादूगी ,
नहीं माँ जी , हम चलते है , ऐसे ही गाँव जायेगे पर कोरोना को लेकर नही ,
वो लड़के चले गये दादी ने दरवाजा बंद किया और नेहा को देख बोली क्या कर रही है ।
देखी क्या मेरी ऐक्टिंग ,
हाँ , हाँ , दादी पर कहीं पापा आ जाते तो
मैं भी डर रही थी , कहीं आजाते तो ये लड़के दरवाजा खुला कर लूट ले जाते ।
हम क्या करते उनके हाथ तो हथियार भी थे
दादी बोली मेरे हथियार के सामने सारे शस्त्र बेकार मेरा एक ही अस्त्र सबको खदेड़ देगा
को विंड ( 19) कोरोना ...

डॉ अलका पाण्डेय

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