अंधेरों पर टेसू खिले, महुआ महके नैन।।देह हुई कामायनी,ये फागुन की दैन।।


अंधेरों  पर टेसू खिले, महुआ महके नैन।।
देह हुई कामायनी,ये फागुन की दैन।।

नेह,,
तुलसी सा‌ इस दौर में,बतलाओ
है कौन।।
पूछा सबसे नेह से,मगर रहे सब मौन।।

बीबी पर‌ संदेह से, मन रहता बेचैन।।
जिससे होती जिंदगी,इक व्याकुल ‌सी रैन।।

आसमान से मेह जब, करते हैैं
बरसात।।
धरती को आनंद की,देते हैं सौगात।।

जीवन भर संग्राम कर,निर्धन मिले
न,गेह।।
ये कैसा संसार है,गायब हुआ स्नेह।।
बृंदावन राय सरल सागर एमपी

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