तुलसी बिन राम अधूरे थे
मर्यादा की बातें होती
अपनों की घातें होती
बंधन बताए जाते हैं
हर रिश्ते यहीं पर आते हैं
संवेगों की बातें सारी
भाव भी सब पूरे थे
मानस ने भाव बताए थे
तुलसी बिन राम अधूरे थे
धर्म ध्वजा भी लहराई
पाप का अंत हुआ माना
सत्य की खोज हुई पूरी
हर रिश्तो को पहचाना
भाई पिता पुत्र पत्नी
प्रण सबके यहां पूरे थे
मानस ने भाव बताए थे
तुलसी बिन राम अधूरे थे
राम बिना न धर्म हो पूरा
राम बिना है मनुज अधूरा
राम बिना मुक्ति ना होती
राम बिना वाणी न पिरोती
राम ही राम राम ही राम
भजन भाव न अधुरे थे
मानस ने भाव बताए थे
तुलसी बिन राम अधूरे थे
सत्साहित्य की बातें होती
हरिधुन की भी रातें होती
मानस की चौपाई गाए
धर्म ध्वजा को फिर लहराए
बिना रचनाकार भूमि अधूरी
तुलसी संग राम भी पूरे थे
मानस ने भाव बताए थे
तुलसी बिन राम अधूरे थे
शंकर दान
जोधपुर
राजस्थान
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