एक दीपक तुम जलाओ
एक दीपक हम जलाएं
फिर अमावस के तमस
हम सभी मिलकर भगाएं।।
हर संकटों से जूझ लेगी
देश की ये रोशनी
एक हाथ तुम अपना बढ़ाओ
एक हाथ हम अपना बढ़ाएं।।
कुछ पलों के ग्रहण से
सूरज कभी मिटता नहीं
एक सुबह की ताजगी
आओ हम मिलकर बिखेरें।
कुछ तितलियां हैं उड़ रहीं
बेखौफ चमनों में
इस खुशनुमां माहौल में
आओ फिर मिल गुनगुनाएं।।
आंच आए आग की
हम एहसास की चिंगारी उठाएं।
तोड़े न टूटें अब किसी के
विश्वास की कड़ियां बनाएं।।
एक पाती फिर लिखी है
सैनिकों के नाम हमने
जयहिंद के नारों से गूंजी
मां भारती की धूल फिर माथे लगाएं।।
बदलाव मंच स्वतंत्र (स्वछंद)
शीर्षक - एक दीपक ( कविता)
नाम - डॉ . अनीता तिवारी , भोपाल
विषय - बदलाव मंच साप्ताहिक प्रतियोगिता
0 टिप्पणियाँ