जीत निश्चित हो


जीत निश्चित हो (स्वतंत्र काव्य )
शीर्षक -जीत निश्चित हो

आपदा से निबटने का ,संकल्प सुरक्षित हो ,
दूरियाँ हों अगर निश्चित ,कोरोना नियन्त्रित हो ।
अनुग्रह का करें पालन ,निर्देशों का हो पोषण ,
स्वेच्छाचारिता छोड़े ,सम्भवता संकल्पित हो ।।
संकट की परिस्थित को, जो समझो तो अच्छा हो ,
न भय का भाव विकसित हो ,ये समझो तो अच्छा हो ।
अपने है तो अपना है ,अपना है तो अपने हैं ,
इसी मतलब को परिभाषित ,कर लो तो अच्छा हो ।।
अपनों की अगर मानो ,संक्रमित घर में गर्वित हो ,
अपनों को सम्भाले स्वयं ,अहम भी पारदर्शित हो ।
वजह बिन वे वजह होके ,अनियंत्रित न होना है ,
बहाना भी अगर हो तो ,लेकिन सारगर्भित हो ।।
संक्रमण के प्रभावों को ,मिटाना जड़ से लक्षित हो ,
संयम की किताबों का ,पल्लवित सार रक्षित हो ।
हैं गम्भीर हालातें   ,नजरअन्दाज ना करना ,
सतर्कता से कदम आगे ,बढ़े तो जीत निश्चित हो ।।
नाम -डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज "
अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश )
9458689065


एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ