बदलाव मंच की चित्रात्मक काव्य सृजन -सह वीडियो काव्य प्रतियोगिता
चित्र क्र -7
नाम अंजली खेर
शीर्षक :- ##बेटी हूँ,,
मुझे बेटी ही रहने दो ##
ब्रह्मा का पहली सुखनिंद्रा में
छोड़ा हुआ निःश्वास हूं मैं ।
तपती धूप में शीतल छांव
का अहसास हूं मैं ।।
मैं फूलों की तरह कोमल फूल हूं
कांटे की तरह चुभता शूल भी हूं ।
कोई मेरे जज्बातों से खेले तो
रण चंडी का त्रिशूल भी हुं मैं ।।
नन्हे-नन्हे परों से भरतीं हूं
गगनचुंबी ऊंची ऊंची उड़ान ।
अपनी काबिलियत से बनाई
मैने समाज मे अपनी पहचान।।
खुशियों के इंद्रधनुषी
रंग सजते है हमसे ।
चार-दीवारी का मकान
घर बनता है हमसे ।।
मत ठेस पहुचाना कभी तुम
मेरी भावनाओं को
तुम्हारी हर सुबह,,
हर शाम है हमसे ।।
नहीँ हूँ असहाय और अबला
नही मांगती सम्मान-दया की भीख
अपनी काबिलियत पर है भरोसा
योग्यता से सब हासिल करना,
मैने लिया है सीख ।।
शिक्षित हुं, स्वावलंबी हुं
मुझे खुद से है प्यार बेशुमार।
हौसला है, आत्मविश्वास है
यहीं है मेरी असली पहचान।।
नही असहाय, नही अबला
नही मांगती दया की भीख ।
योग्यता से हासिल करना
मैने अब सब लिया है सीख ।।
शिक्षित हूँ, स्वावलंबी हूं,
मुझे खुद से है प्यार बेशुमार
हौसला है, आत्मविश्वास है
यही है मेरी पहचान
पढती हूं, समाज को देती हूं
सफलता के नित नए पैगाम
हमारे सशक्तिकरण के बिना
देश की नही है आन-बान-शान ।।
बहुत हुये अत्याचार
अब और नही कुछ सहना है
तोड़ के चुप्पी आज
दिल की हर बात कहना है ।।
अंजली खेर
भोपाल
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