कृष्ण ने जीवन कर्म क्षेत्र का
कुरुक्षेत्र आत्म बोध का धर्म
क्षेत्र कुरुक्षेत्र सा संग्राम है।।
लड़ना होता है हर प्राणी जीवन को यही ब्रह्म ब्रह्मांड विधान है।
ज्ञान ध्यान विज्ञान धर्म शत्र शात्र है।।
द्वेष दम्भ घृणा कुटिलता स्वार्थ के सब दांव है।
क्रोध वासना लालच मद मोह
चौसर के सब चाल है।।
लोलुपता कामुकता कामी
दामी के दाम है।
बिना शस्त्र मर जाता प्राणी
जीवन बदल देती हैं चोला
जल जाता अहं अहंकार की
देह बिन चिंगारी आग है।।
धर्म क्षेत्र के कुरुक्षेत्र जीवन
संग्रामो में स्वयं से लड़ना
पड़ता है पहले ।
हार गए यदि
तब तुम पर असुर
तामसी भारी होगा मेरी ही
सृष्टि का प्राणी स्वयं विनास का
अभ्युदय आधार है।।
यदि जीता पहले स्वयं को
तुममे मेरा वास होगा
आत्म बोध की परम शक्ति
प्रकाश का तब तू युग उजियार है।।
मैं तेरा सारथी प्राणी नर तू
अर्जुन काल की चाल
काल कपाल है।।
मर्यादा की सृष्टि तुझसे पितामह
द्रोण कर्ण दुर्योधन अपने अपने
कर्मोे संकल्पों के रिश्ते नाते
सबके कल्याण का तू ही कर्णधार
है।।
हे प्राणी पार्थ त्यागो भय
भ्रम लिप्सा वासना का मकड़
जाल ।
क्योकि फंस कर तुम
इस मकड़जाल में पछताओगे
साथ हाथ नहीं कुछ पाओगे
अधम शारीर का चोला पाते
और बदलते जाओगे।।
आत्म बोध के कर्म ज्ञान
निष्काम कर्म बैराग्य धर्म क्षेत्र
के कुरु क्षेत्र जीवन संग्रामो के
विजयी ।।
करुणा छमाँ सेवा
तपश्या त्याग के शत्र शात्रों का
अर्ध रथी महारथी युग
तेरे कदमों की प्रेरक प्रेरणा
प्रकाश है।।
कायर कमजोर नहीं बनाता
कृष्णा का गीता ज्ञान पुरुष
पराक्रम पुरुषार्थ कर्म धर्म की
सत्य व्याख्या नर में नारायण
प्राणी पार्थ अर्जुन नाम।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
Badlavmanch
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