इच्छाएं घर से चलीं, कर सोलह श्रृंगार।।
लौटी हैं बेआबरू ,हो घायल हर बार।।
विपदा बस जब कृषक ने, बेचा अपना खेत।।
मिट्टी रोई फुटकर , मैंडैं हुई अचेत।।
मृगतृष्णा सी जिंदगी जिसमें भटके लोग।।
जीवन जल संदर्भ है,इक अनुपम संयोग।।
शीशे का लेकर बदन , चढ़ना हमें
पहाड़।।
उसपर आंधी तेज है,और खोखले
झाड़।।
उस जंगल सी जिंदगी कैसे करें
कबूल।।
जिसमें बट पीपल नहीं, उगते सिर्फ बबूल।।
बृंदावन राय सरल सागर एमपी मोबाइल नंबर 786 92 18 525
5किताबें प्रकाशित
40साल साहित्य सेवा
अनेकों सम्मान प्राप्त विभिन्न
संस्थाओं से।।
250कवि सम्मेलन में काव्य पाठ का अनुभव,
रिटायर इंजीनियर
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