एकता की क्रांति देखो



एकता की क्रांति देखो!
एकता की कान्ति देखो!
एकता की आन्धी देखो!
देखो,देखो,देखो!
बिखरे हुए अन्धों देखो
एकत्व में हीं राह है
जो चाह है तुम्हारी 
वही तो राह है
संकीर्ण मानसिकताओं और कुंठाओं का त्याग कर आगे बढ़ो 
मसीहा कोई नही आएगा 
लेकर साथ चलनें को 
स्वयं के संबल स्वयं बनो
बन्द करो आरोप-प्रत्यारोप
पहले पहल स्वयं करो
निजता का तुम ना हनन करो
जियो आत्मसम्मान से 
आत्मसंघर्ष तुम करते-करते 
आन्दोलन भी करो 
अधिकारों की माँग करो
उबाल भरो रक्त में अपने,
की खुदगर्ज़ भी काँप उठे
तानाशाही को तुम मात दो,
भर अंगार ज्वालामुखी का
क्रांति का मसाल थाम
कदम कभी ना तुम डगमगाओं
टुट पड़ो बनकर शोले 
एकता का संचार करो
नामर्दों के कतार से निकल
मर्दानगी अपनी दिखलाओ 
यक्ष-प्रश्न करो सत्ता से 
भ्रष्ट-तंत्र के दुराचारियों से
एकता की क्रांति देखो!
एकता की कान्ति देखो!
एकता की आन्धी देखो!
देखो,देखो,देखो!
बिखरे हुए अन्धों देखो
एकत्व में हीं राह है
✍कमलेश कुमार गुप्ता गोपालगंज,बिहार

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