फिर से

फिर से
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उद्विग्न हो गया है मन
सहज होने के लिए
कर लिए लाख जतन
घर, परिवार, कुटुम्ब और समाज
फीके प्रतीत हो रहे हैं जैसे आज
कहीं न कहीं
घर कर गई है, असुरक्षा की भावना
विचलित हूं बहुत
चाह कर भी, हंस नहीं सकता
पत्नी और बच्चों को देखकर
खुद को सामान्य बनाने की
असफल चेष्टा करता रहा हूं
देश एक गहन संकट में है
कोरोना वायरस के कारण
लाखों लोग हो रहे प्रभावित
अनेकों हुए काल कवलित
संकट की इस घड़ी में
एकता का सूत्र
बांध सकता है परस्पर
दूर हो सकता है डर
प्रत्येक भारतीय के मन से
और फिर से
हो सकते हैं, उन्नति के पथ पर अग्रसर!

पद्म मुख पंडा
महा पल्ली
 

     

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