विषय किसान
विधा कविता
मेहनत से सिच धरा को जो अन्न उपजाये।
ख़ुद के पसीने से जो देश के भूख को मिटाये।।
जिसके भावना से प्रसन्न होता है भगवान।
आन बान शान है मेरे देश के किसान।।
क्या आंधी क्या बारिश वो तो सब झेल जाता।
ना तो है नेता अफसर फिर भी देश चलाता।।
गरीब होकर भी जो है दिल से सदा धनवान।
आन बान शान है मेरे देश के किसान।।
जिसके ऊपर राजनीति कर चमकते है पॉलिटिशियन।
जिसके साथ एक नही अनेकों प्रकार के रहता है टेंशन।।
ये देश का दुर्भाग्य है ऐसे विरो को नही मिलता सम्मान।
आन बान शान है मेरे देश के किसान।।
तन पे ना सूट बूट है ना कहे इसे कोई बाबु भैया।
आकाल से देश को बचाये,है मझधार में खिवैया।।
जिसके दमपर मुश्कुराता है मेरा पूरा हिंदुस्तान।
आन बान शान है मेरे देश के किसान।।
इतना कुछ करके भी जो महगाई का झेल रहे है मार,
है अन्नदाता फिर भी नही मिलता जिसका अधिकार।।
ब्याज के बोझ तले दम तोड़,निकल रहा जिसके प्राण
आन बान शान है मेरे देश के किसान।।
अब भी समय है मानों क्या है इनके हम पे उपकार।
नही तो धरा धराशायी होगी,नष्ट हो जाएगा ये संसार।।
समय रहते बचा लो उनको जो है तुम्हारे लिए वरदान।
आन बान शान है मेरे देश के किसान।।
प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार
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