कविता- है नमन सैनिक को

बदलाव साहित्य मंच

विद्या- कविता
दिनांक- 19, जून' 2020
दिन - रविवार
शीर्षक - हे नमन सैनिक को
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है   नमन सैनिक को  जो,
सीमा की रक्षा कर रहे हैं।
खतरों  से  जो   जूझकर,
हमको सुरक्षित कर रहे हैं।

छोड़ा उसनें घर को अपने,
सरहदें ही घर बनी है।
जननी के आंचल को छोड़ा,
सरहदें आंचल बनी है।

मोह पत्नी बालकों का,
छोड़कर जो चल पड़े हैं।
आंखों में बहती नदी को,
सब्र  से   बांधे   चले  है।

आग बरसाए मरुस्थल,
जीना भी  आसां नहीं है।
आग     सीने    मे    लिए,
जांबाज सीमा पर अड़े हैं।

बर्फानी हिमनद की चोटि,
तूफानो कि एक झड़ी  है।
जज्बाती   तूफान  लेकर,
वो हिमालय  पर  खडे हैं।

सीने में  लेके  सुकुं  सब
चैन से  सोते 'रमेश ' हैं।
सरहदें सीने की अपनी,
वो  बना कर के  खड़े हैं।
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नाम - रमेश चंद्र भाट,
पता - क्वार्टर संख्या टाईप-4/ 61-सी, अणुआशा कालोनी, पो.आ. - रावतभाटा, वाया-कोटा, राजस्थान। पिन-323307,
Mob. 9413356728

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