सोचा था तुम्हें अपनी तकदीर बनाएंगे
दिल की दीवारों पर सपनों से सजाएंगे
मन मन्दिर में तेरी मूरत बैठाएंगे
पर बड़ी बईमान जिन्दगी निकली
तू काँच कि टूटी तसवीर निकली
चुभता है जिसका हर टुकड़ा
तेरा वादा वो खंज़र निकला
जाने कहाँ टूटी है डोर मेरे एतबार
की
झूठी तेरी हर कसम निकली
डर लगता है अब उल्फ़ते इश्क़ से
क्योंकि उसकी गली से मेरे अरमानो की अर्थी निकली
बड़ी बेईमान जिंदगी निकली
चाहा था उसे बड़े गुमान से
बड़ी गुमनाम सी वो मोहब्बत निकली
आते नही अब खत उसके
वो भूली हुई कोई मंजिल निकली
बड़ी बईमान यह जिन्दगी निकली
नेहा जैन
ललितपुर
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