ज़िन्दगी सभी के लिए आसान नही होती। कुछ ज़िन्दगी को काफी मुश्किलों से लड़के आगे बढ़ाते हैं। उन्हीं के इस सफर पर लिखी मेरी स्व:रचित और मौलिक कविता को आपके समक्ष लेकर प्रस्तुत हूँ। कविता का शीर्षक है-
"जंग ज़िन्दगी की
लड़ते हैं वो..."
जंग ज़िन्दगी की
लड़ता वो
तुलसी का पत्ता
जो गर्मी की लू में
बिल्कुल नही चलता
जंग ज़िन्दगी की
लड़ता वो सदियों से
प्यासा कौआ
जो भरता कंकड़
पानी ऊपर लाने को
जंग ज़िन्दगी की
लड़ती वो लड़की
जो दूर सुनसान से
रास्तों को पार करके
जाती है पढ़ने
आगे बढ़ने के लिए
और रोकते हैं मनचले
उसका रास्ता
जंग ज़िन्दगी की
लड़ता वो देहाती
जिसकी नीची है जाति
जो नहीं चढ़ा कभी
ऊपर वालों के कुओं पर
और आज भी जिसकी औरत
करती है लम्बा घूंघट
और बिताती पहली रात
अपनी शादी के बाद
ऊंचे किसी और के साथ
जंग ज़िन्दगी की
लड़ता खेतों में जो
बहाता पसीना
फ़सल उपजाकर
भरने को पेट सबका
और कमाता मुनाफ़ा उसका
मंडी का व्यापारी
जंग ज़िन्दगी की
लड़ते वो बच्चे
जो गोल से दिखने वाले
लोहे के तार को ही
समझते अपनी गोल दुनिया
और दिखाते उससे करतब
दौड़ती-भागती
गाड़ियों के बीच
जंग ज़िन्दगी की
हम नही लड़ते
बैठे घर में
किताबें खोल
टेलीविजन के
पलटते चैनल
और देखते
ख़बरे भरमार
जंग जिंदगी की
लड़ते हैं वो...
डॉ. लता (हिंदी शिक्षिका),
नई दिल्ली
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