दोस्तों आज दोस्ती की बात सुनाता हूँ,
राज की बात आज यहाँ बतलाता हूँ.
दोस्त का नाम आते ही मन उपवन हो जाता है,
अच्छे बुरे वक्त में वही तो काम आता है,
परीक्षा का परिणाम हो, तो मन विचलित हो जाता है,
कैसे पास कर गया वो , यही सोचता रह जाता है,
फेल हो गए तो भैया, आकर वो खुद समझाता है,
हिम्मत रख ऐ यार मेरे, अगली साल हम पास करेंगे,
ये कहकर मन ही मन मुसकाता है,
लंच में तारीफ करते हुए, सारा खाना खा जाता है,
कल मेरा खा लेना बोलकर, हाथ पोछते जाता है,
होमवर्क न हो पूरा तो, शिकायत भी वही कर जाता है,
टीचर से मार खाने पर, मुझे और फिर समझाता है,
क्लास से बंक मरवाकर घर आकर बतलाता है,
अंकल आंटी देखो इसकी खातिर, मुझे भी सुनना पड़ जाता है,
हो जाए गर बवाल तो यारो,
वहाँ और भी पिटवाया है,
खुद को युधिष्ठिर का चेला जान, शांति के पाठ पढ़ाता है,
प्रेम का कोई चक्कर हो तो, प्रेमिका संग फरार होने को उकसाता है,
खुद उसकी सहेली के संग फरार भी हो जाता है,
जब मंजिल पाने की बारी आये तो दोस्त ही दोस्त को बनाता है,
हर मुसीबतों में एक सच्चा दोस्त ही दोस्त के काम आता है,
बारिश में भी, आंखों में आसूं को पहचान कर रुमाल अपना बढ़ाता है,
दोस्तों ....
दोस्त आखिर दोस्त होता है,
जुदा होकर, मिलने को उम्र भर तड़पाता है...
डॉ सत्यम भास्कर "भ्रमरपुरिया"
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