यादें सहारा बनी

पिरामिड विधा में लिखी मेरी आज की स्व:रचित एवं मौलिक कविता दिल लगाके सुंदर जहां बनाने और उसके बाद प्रेमी के न रहने पर यादों के सहारे कैसे कट जाती है, इसी भाव पर आधारित है। कविता का शीर्षक है- 'यादें सहारा बनी'

यूं
दिल
लगाके
मिलकर
बनाया जहां
अपना सुंदर
जैसे ताजमहल
और देखा मुड़के
मुमताज़ नही
धड़कने भी
रुकी-रुकी
मगर
जान
थी

वो
यादें
सहारा
बनी और
पत्थरों को भी
मिला मुकम्मल
सुकून जो अक्सर
देता रहा दिल को
अंदाज़ जीने का
और उसकी
कमी अब
खलती
नहीं
यूं

डॉ. लता (हिंदी शिक्षिका),
नई दिल्ली
©

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