चोटीवाले दाढ़ी वाले बेैठे हैं//
बस्ती बस्ती बिषधर काले बैठे हैं//
भोली चिडिया जाये कहां बच्चे लेकर,
डाल डाल पर कौऐ काले बैठे हैं//
अंधयारों के सर ऊँचे हैं बस्ती में,
खोफज़दा खामोश उजाले बैठे हैं//
दूर रहेंजो हैं सांपों की जाति के,
हम सांपों के दांत निकाले बैठे हैं//
नादां हैं कुछ लोग सरल इस दुनिया में,
जो आँखों में सपने पाले बैठे हैं//
बृंदावन राय सरल सागर मप्र
Badlavmanch
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