चोटीवाले दाढ़ी वाले बेैठे हैं//बस्ती बस्ती बिषधर काले बैठे हैं//

ग़ज़ल....बृंदावन राय सरल सागर मप्र

चोटीवाले  दाढ़ी वाले बेैठे हैं//
बस्ती बस्ती बिषधर काले बैठे हैं//

भोली चिडिया जाये कहां बच्चे लेकर,
डाल डाल पर  कौऐ काले बैठे हैं//

अंधयारों के सर ऊँचे हैं बस्ती में,
खोफज़दा खामोश उजाले बैठे हैं//

दूर रहेंजो हैं सांपों की जाति के,
हम सांपों के दांत निकाले बैठे हैं//

नादां हैं कुछ लोग सरल इस दुनिया में,
जो आँखों में सपने पाले बैठे हैं//

      बृंदावन राय सरल सागर मप्र

Badlavmanch

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