मैंने बनना चाहा, तुम्हारे भीतर राम की सिया। लेकिन, प्रियतम तुमने मुझे, उर्मिला बना दिया।

 
Ekta Poet Banka Bihar: मैंने बहुत कुछ पाकर भी सब कुछ खोया, 
यह महसूस कर मेरा दिल जार जार रोया, 
जिन्दगी ने दे दी मुझको बेशुमार जिल्लतें,
टूट कर बिखर गया, जो सपना था संजोया ।।
        **एकता कुमारी **
 Ekta Poet Banka Bihar: कभी खुद में छुपाया था तूने मुझे,
आज तुमने ही मुझको बेगाना किया।
ग़र मैं दरिया थी तो तू था मेरा सागर,
फिर आँसू का तुमने क्यों तोहफा दिया।
           **एकता कुमारी **
Ekta Poet Banka Bihar: दर्द को छुपाने का यही तो एक बहाना है।
अपनों ने सितम ढाया,दुश्मन ज़माना है।।
जीने के लिए मजबूत सहारा चाहिए मुझे,
मझधार मे हूँ ,मुझको तुम्हारा प्यार पाना है।।
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            **एकता कुमारी **
Ekta Poet Banka Bihar: मैंने बनना चाहा,
 तुम्हारे भीतर राम की सिया।
लेकिन, प्रियतम तुमने मुझे,
 उर्मिला बना दिया। 
माँगा था मैंने तुमसे चार कदम ,
चलने का साथ।
थामा था तुमने प्रेम पाश मे,
 बंध कर मेरा हाथ। 
न मै हंस सकती हूं,
और मै  रो भी नही सकती हूँ।
लेकिन प्रिततम मै,
तुमको खो भी नहीं सकती हूँ।
ऐसी भी क्या थी मेरी खता?
जो तुमने ऐसा दिया सिला। 
मैंने बनना चाहा ,
तुम्हारे भीतर राम की सिया।
लेकिन, प्रियवर तुमने मुझे,
 उर्मिला बना दिया।।
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        ** एकता कुमारी **
Ekta Poet Banka Bihar: आज मुझे एहसास हुआ अबला हूँ मैं नारी हूँ,
जग को जीता तो क्या हुआ अपनों से ही हारी हूँ।
कभी समाज की बंदिशें लगी तो कभी परिवार के मर्यादा में बँधी, 
मैंने हर पल अपनी हर खुशियों को सभी पे वारी हूँ।
 Ekta Poet Banka Bihar: गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं: 
गुरु के बिना कभी मिलता कोई ज्ञान नहीं,
माँ के बिना इस जहाँ में कोई पहचान नहीं।
मिलने को तो मिलते हैं जीवन में बहुत कुछ,
लेकिन, पिता के बिना मिलता पूर्ण सम्मान नहीं।
          * *एकता कुमारी **
Ekta Poet Banka Bihar: द्रोणाचार्य न होते तो अर्जुन न बन पाते धनुर्धारी!
गुरु के आगे तो ईश्वर ने भी अपनी हार स्वीकारी।
शिष्य आरुणि के मध्य गुरुभक्ति भी बेमिसाल है, 
गुरु की गुरुता  के आगे झुकती ये दुनिया  सारी। 

 गुरु क्या हैं एकलव्य ने इसका महत्व बताया, 
स्वयं शिक्षा ग्रहण कर गुरु का स्थान बनाया। 
संपूर्ण सृष्टि भी गुरुदेव के बिना रहती अधूरी है ,
चन्द्रगुप्त ने चाणक्य को पूजकर सम्मान बढ़ाया।
      ** एकता कुमारी * *
 Ekta Poet Banka Bihar: सबकी खुशियों की खातिर,मैं तिल-तिल कर जली!
जिस साँचे में मुझे ढालना चाहा उसी साँचे में मैं ढली!
खुदा जाने, कहाँ पर मुझसे ऐसा कैसा कसूर हो गया,
ज़िन्दगी तो छोड़ो , सजा में मौत भी अच्छी नहीं मिली!

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