मंच को नमन
विषय- चरणों में जगह दे दे
मैं कुबुद्धि मूढ़ हूं लेकिन
हूं तेरा ही लाल मां
कुछ नहीं मांगता मैं
चरणों में जगह दे दे मां
कर सकूं माटी की सेवा
इतना बल विक्रम दे
धरती रहे हरी-भरी
मुझे इतना ही उपक्रम दे
कलियां झूम उठे मस्ती में
नाचेंगे गाएं
मरे न कोई भूख से
जन-जन को इतना श्रम दे
मैं निर्बल काय हूं लेकिन
हूं तेरा ही लाल मां
कुछ नहीं मांगता मैं
चरणों में जगह दे दे मां
महक उठे दिशाएं सब
करें जग का नभ अभिनंदन
गीत सुनाएं वृक्ष प्रगति के
कहीं रहे ना क्रंदन
मानव मानव से प्यार करें
रहे द्वेष ना किंचित
संबंधों का पालन कर
करें इक दूजे का वंदन
मैं निर्धन हीन हूं लेकिन
हूं तेरा ही लाल मां
कुछ नहीं मांगता मैं
चरणों में जगह दे दे मां
ज्ञान का दीप जला अंतस
उद्धार करो मेरा
अपनी सददृष्टि कृपा से तूं
तम कर दूर घनेरा
मेरी भंवर फसी कश्ती की
तुम ही एक सहारा
दुनियां गाती है यश गान
हे दयामयी तेरा
मैं दुर्जन भाव हूं लेकिन
हूं तेरा ही लाल मां
कुछ नहीं मांगता मैं
चरणों में जगह दे दे मां
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक (कवि एवं समीक्षक) कोंच,जनपद-जालौन, उत्तर -प्रदेश-285205
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