कदरें ज़िंदगानी की अपने हाथ मलती हैं//



ग़ज़ल....वृंदावन राय सरल सागर

कदरें ज़िंदगानी की अपने हाथ मलती हैं//
शह् र में फसादोॆं की जब हवायेंचलती हैं//

आग जब भड़कती है दिल मेंशरपसंदी की/
बेकुसूर लोगों की बस्तियां ही जलती हैं//

ज़ह् नियत है बारुदीऔर सोच है आतिश/
फ्रिक है नई नस्लें आज कैसे पलती हैं//

बेटियां ग़रीबों की सह रही हैंआये दिन/
डोलियां पहुंचती हैं अर्थियां निकलती हैं//

जैसे मौजें साहिल से मारती हैं सरअपना/
मेरी आरज़ूएं यूं करवटें बदलती हैं//

यूं सरल मुकम्मल तो कोईभी नहीं  
होता/
मुझ पे क्यों ज़माने की तल्खियां उछलती हैं//

   वृंदावन राय सरल सागर मप्र
मोब..७८६९२१८५२५
[09/07, 23:14] वृन्दावन राय सरल: मैं वृंदावन राय सरल सागर एमपी 40 साल साहित्य सेवा,   पांच किताबें प्रकाशित।। आयु 70 वर्ष 250 कवि सम्मेलन पढ़ने का अनुभव=
अनेकों सम्मान प्राप्त मोबाइल= नंबर 786 92 अट्ठारह 525==
[09/07, 23:31] वृन्दावन राय सरल: ग़ज़ल....वृंदावन राय सरल सागर

कदरें ज़िंदगानी की अपने हाथ मलती हैं//
शह् र में फसादोॆं की जब हवायेंचलती हैं//

आग जब भड़कती है दिल मेंशरपसंदी की/
बेकुसूर लोगों की बस्तियां ही जलती हैं//

ज़ह् नियत है बारुदीऔर सोच है आतिश/
फ्रिक है नई नस्लें आज कैसे पलती हैं//

बेटियां ग़रीबों की सह रही हैंआये दिन/
डोलियां पहुंचती हैं अर्थियां निकलती हैं//

जैसे मौजें साहिल से मारती हैं सरअपना/
मेरी आरज़ूएं यूं करवटें बदलती हैं//

यूं सरल मुकम्मल तो कोईभी नहीं  
होता/
मुझ पे क्यों ज़माने की तल्खियां उछलती हैं//

   वृंदावन राय सरल सागर मप्र
मोब..७८६९२१८५२५

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