बदलाव मंच पर साप्ताहिक प्रतियोगिता
चित्रात्मक काव्य सृजन प्रतियोगिता
चित्र संख्या 5
विषय "माँ"
विधा : दोहे
*"माँ"*
माँ ही जीवन पालती, देकर अपना खून।
जीवन पलता देखकर मिलता उसे सुकून।।
मन में रखती प्यार है, होठों पर मुस्कान।
देखो माँ के रूप में, रहते है भगवान।।
माँ ऐसी तस्वीर है, होती नहीं अधीर।
जीवन पाले कोख में, सहकर न्यारी पीर।।
माँ ही है नारायणी, नर की सृजनहार।
माँ से ही संसार है, माँ सुख का आगार।।
सोती सबके बाद में, उठे खूब प्रभात।
कोल्हू के ये बैल सी, लगी रहे दिन रात।।
ममता समता का रहे, देखो मन में भाव।
माँ का आँचल दे सदा, बड़ी अनूठी छाँव।।
नारी रूप अनेक है, सभी रूप है नेक।
माँ का रूप अनूप है, देख सके तो देख।।
माँ तो गंगा रूप है, सबके धोती पाप।
ये उज्ज्वल सबके करे, मैली होती आप।।
नारी का माँ रूप तो, अद्भुत रूप अनूप।
माँ की ही तो देन है, सुर नर मुनि सब भूप।।
- भूपसिंह 'भारती',
आदर्श नगर नारनौल, हरियाणा।
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