वजूद

मेरी यह रचना लैंगिक भेदभाव और बालिका शिक्षा पर आधारित हैं।
तेरे वजूद का हिस्सा हूँ
जीवन का तेरे किस्सा हूँ
यहीं तो परिचय है मेरा
फिर क्यों डरता है तू मुझे अपनाने से
बेटी हूँ हा बेटी हूं
बेटी हूं कोई पाप नही
जन्म देकर भी घ्रणा मुझसे
क्या  ऐसा कोई अपराध हूँ मै
बस पढ़ा देना मुझकों
स्कूल मुझे जाना है
और न कुछ मांगूंगी
बोझ न बनूगी तुझ पर
तेरा कर्ज चुका दूँगी
अभी मुझे बस जीने दे पढ़ लिखकर कुछ बनने दे
नाम करुंगीतेरा रोशन
पल वो आएगा
सीना तेरा चौड़ा होगा
तिरस्कर न मेरा कर
एक दिन वो आएगा जब तू मुझे
गले लगाएगा
मेरी बिटिया हा मेरी बिटिया कहकर लोगों से मिलवाएगा
नाक तेरी ऊँची होगी
बनकर वो दिखलाऊंगी
अभी मुझे बस पढ़ने दे ,बस पढ़ने दे।
नेहा जैन

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