राम जगत का सार सर्वथा, अन्य न तारण हारा है।* *सिय के पिय बिन इस धरती पे, अपना कौन सहारा है।।* दसमुख क्रोध रूप होकर के,ज्ञान शून्य कर जाता है। पाप बढ़ा कर इस जगती की, शाँति शीलता खाता है।।



🌷 *नमन पाञ्चजन्य काव्यप्रसून* 🌷 
                 *एक भजन* 

*राम जगत का सार सर्वथा, अन्य न तारण हारा है।*
*सिय के पिय बिन इस धरती पे, अपना कौन सहारा है।।*

दसमुख क्रोध रूप होकर के,ज्ञान शून्य कर जाता है।
पाप बढ़ा कर इस जगती की, शाँति शीलता खाता है।।
कुम्भकरण आलस बनकर के, कार्य नहीं करने देता।
और उधर घननाद अहम बन, जीवों को दुख है देता।
कारण आर्त हुई वसुधा ने,प्रभु को आज पुकारा है।
 *राम जगत का सार सर्वथा, अन्य न तारण हारा है।।* 

खर-दूषण नित लोभ मोह बन,धृष्ट बुद्धि कर जाते हैं।
सूर्पणखा कामेक्षा बनती,सारे पुण्य नसाते हैं।।
सुख सारण दल भेद बताकर,द्वंद अधिक उपजाते हैं।
कालनेमि के से आडम्बर, दृढ़ पथ से बहकाते हैं।।
दलन इन्ही दुष्टों का करना, ही कर्तव्य तुम्हारा है।।
*राम जगत का सार सर्वथा, अन्य न तारण हारा है।*

जढ़ता प्रस्तर खण्ड अहिल्या, बना रही हम जीवों को।
ऋषि गौतम का श्राप भोगती, क्रीड़ इंद्र से क्लीवों को।।
इसकी आज विमुक्ति और,सबरी के बेर हुलासे हैं।।
हे!कौशल के राजकुँवर, नैना दर्शन को प्यासे हैं।।
हनुमत के अति प्रिय श्रीराघव,तव  जयकार उचारा है।।
 *राम जगत का सार सर्वथा, अन्य न तारण हारा है।* 

सखा एक सुग्रीव तुम्हारे,नृप दसरथ के जाए हो।
पिता वचन की पत रखने को,त्याग राज वन धाये हो।।
वन में नित्य ऋषी मुनियों के,भय विमोच्य कारनारे थे।
लखन और सिय साथ लिए प्रभु, जो नैनों के तारे थे।।
आज दास उपमन्यु पुकारे,संकट भू पर भारा है।।
 *राम जगत का सार सर्वथा, अन्य न तारण हारा है।* 


नित्यानन्द वाजपेयी नीलकण्ठ 'उपमन्यु'🙏🏻✍️


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