नव प्रभात का करें हम मिलकर अभिनंदन रहे ना इस पावन धरती पर कहीं क्रंदन

मंच को नमन
विषय -नव प्रभात

नव प्रभात का करें हम मिलकर अभिनंदन
रहे ना इस पावन धरती पर कहीं क्रंदन

तम का करें ग्रास दीप जला दे घर घर
अपने कर्म से कभी करे ना अगर मगर
अंतस की नव शक्ति जगा आलस्य भगाएं
गाए गीत प्रीत के महके डगर डगर

रंग बिरंगी तितलियां से रहे सुशोभित उपवन
नव प्रभात का करें हम मिलकर अभिनंदन

बैर रहे ना कहीं निर्भय हो जीवन सब का
छोटे और बड़े क्या आदर करना सब का
प्रीति भरे सब गीत सुनाएं इक स्वर में
दुखी रहे न कोई रहे प्रफुल्लित मन सबका

उल्लास भरे मस्ती में झूम उठे जन जन
नव प्रभात का करें हम मिलकर अभिनंदन

सारे जग को आज दिखा दो अपनी शक्ति
कितनी प्रबल होती है एकता की भक्ति
माणिक शीश झुकाता दुश्मन भारत की माटी
लिखें हम हिंदुस्तान के हित में नूतन सूक्ति

आओ करें हम सब तृष्णा घमंड का हवन
नव प्रभात का करें हम मिलकर अभिनंदन
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक (कवि एवं समीक्षक)कोंच, जनपद -जालौन, उत्तर -प्रदेश-285205

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