धधक रही थी ग्रंथो की ज्वाला,नालंदा की उन चिताओं में,

धधक रही थी ग्रंथो की ज्वाला,
नालंदा की उन चिताओं में,
ह्वेनसांग को भी देनी पड़ी,
योग्यता की परीक्षा दाखिलाओं में,
मिथिला की ये पावन धरती,
स्वयंवर ने दी चुनौती देश के राजाओं में,
तक्षशिला भी है गवाही,
न जाने कितनी शिलाओं में,
बुद्ध बने भगवान जहाँ,
व्याप्त है छवि वृक्ष की शाखाओं मे,
जैन हुए विख्यात यहां,
साधक बने कंदराओं मे,
चाणक्य ने जब लिया था प्रण,
अखंड भारत का स्वप्न शिखाओं में,
विर कुंवर ने क्षत-विक्षत किया,
फिरंगियों की तोड़ी कमर नौकाओं मे,
नमक सत्याग्रह ने झकझोर दिया,
चंपारण के गलियारों मे,
राजेंद्र बाबू स्वतंत्र भारत के प्रथम नागरिक,
चर्चा थी विश्व की सत्ताओं में,
आज बेवस, मूक, और तमाशे हैं,
सत्ता के गलियारों में,
चंद भ्रष्टों कि लोलुपताओं की खातिर,
बिहार बना मजाक तकिया कलामों में,
भास्कर की बात मे टीस है,
अपने सारे दोस्तों यारों और फिजाओं में।
डॉ सत्यम भास्कर भ्रमरपुरिया
 डायरेक्टर आयुस्पाईन हास्पिटल दिल्ली

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