आदमी असल उहे धरती पर..

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आदमी असल उहे धरती पर..
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धन, बल, बिद्या पाके भरपुर जेकरा घमंड ना आवेला। 
आदमी असल उहे धरती पर जेस सत धरम फ इलावेला।। 
माई -बाप के गुरू मानेला, 
आदर के चादर तानेला, 
सेवा में सबके बान्हेला, 
साँचे में सभ कुछ सानेला, 
धन दूसरा के माटी जानेला, 
गुन लेके अवगुन खानेला, 
संतोख, तेयाग, तपस्या से -
जे सगरो जिनिगी छानेला। 
पेयार -दुलार, बिस्वास -आस जन-जन बीच जगावेला। 
आदमी असल उहे धरती पर जे सत धरम फ ईलावेला।। 
जे सभका से मीठ बोलेला, 
निमन गुन सबसे टो लेला, 
अवगुन आपन ट टोलेला, 
आपन दुख अपने गो लेला, 
ठगन के कल ई खोलेला, 
ना सांच बाति से डोलेला, 
नेकी भलाई आ सेवा से, 
जे स उँसे जिनिगी धो लेला। 
अपना अउरी पराया के भेद भाव जे दूर भगावेला। 
आदमी असल उहे धरती पर जे सत धरम फ ईलावेला।। 
ना असल धरम से टरेला, 
बाउर कबहूँ ना करेला, 
ना झूठ झगरा में परेला, 
ना देखि केहू के जरेला, 
ना बाति-बाति पर बरेला, 
लीहल छोडी के दीहल जाने, 
आपन दे सभके भरेला  
कुछ दान -पुन रोज करत रहे औरन से धाइ करावेला। 
आदमी असल उहे धरती पर जे सत धरम फ इलावेला।। 
सुख दिहले में सुख पावेला, 
नीमन सभके सिखलावेला, 
रोज हरि जी के गुन गावेला, 
जे जहरो पी मुसुकावेला, 
सेवा सत्संग में धावेला, 
उपकार कके भोरवा़वेला, 
सभके इज्जत देला हरदम, 
जस सब जगही से पा़वेला। 
देव दुर्लभ देह "कवि बाबूराम "जे नाही बेकार गंवावेला। 
आदमी असल उहे धरती जे सत धरम फ इलावेला।। 
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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला-गोपालगंज (बिहार) पिन-८४१५०८,मो०नं०-९५७२१०५०३२
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
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                     1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
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                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
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                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
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मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
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