विष से विषय भयंकर

🌾विष से विषय भयंकर 🌾
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विष से विषय भयंकर विषयों में ही फंसकर के ,
हाथी ,हरिण ,मीन ,भौंरा फिर प्राण को गंवाते।
स्वभावानुसार अपने शब्दादि पांच  विषयों में ,
एक एक का संयोग पा एक एक हैं बंध जाते।
स्पर्श ,शब्द ,रस ,गंध ,रूप  में लुभा  के ,
आसक्त हो विषयों में कुछ भी समझ न पाते।

शिकारी कृत हथुनी दृश्य देखे झुण्ड हाथी ,
स्पर्श में  लुभा  के  गढा़ में जा गिर जाते ।
शब्द में लुभा हरिण भी निहाल हो फंस जाता ,
शिकारी अपने बाद्यो को बन बीच जब बजाते।
चारा  बना  के  बंशी जब डालता मछेरा ,
रस में लुभाके मीन भी फंस जाती उसको खाते।

गंध पै लुभा  के  भौरें कमल के पंखुडी से ,
सूर्यास्त  बाद  लोभी स्वतः ही हैं घिर जाते।
प्रकाश पर पतंग  मतवाला बन के दौडे ,
मोहित हो करके रूप पर प्रकाश पै जल जाते।

पांचों विषय में फंस के और सह के दुःख दारूण,
सिर्फ एक के संयोग से नाहक ही हैं मर जाते।
पांचो से जकडा़ मानव कैसे भला बच सकता ,
अमूल्य  मानव  योनी  विषयों में क्यों लगाते।

विषयों के  बावला को कोई बचा न पाता ,
सदज्ञान  दे  के इससे  गुरूदेव ही छुडा़ते ।
विषपान से मृत्यु होती दृश्यमात्र से विषय के,
यमराज काल  फांस लेके पास में आ जाते।
विषय  बुरा  भयंकर आसक्त हो न इसमें ,
विषयों में फंसने वाले  बर्बाद ही हो जाते ।
विषयों से परे जाके सदगुरू शरण को पाके ,
कवि बाबूराम  सबही  तत्व ज्ञान सार पाते ।

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बाबूराम सिंह कवि 
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज (बिहार )841508
मो0नं0 - 9572105032
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
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                     1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
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                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
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                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
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मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
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