हम-तुम,तुम-हम करते-करते,
घंटो बतियाते हैं।
काम की कोई बात नहीं होती,
यूं समय बिताते हैं।
गुड मॉर्निंग,गुडनून, गुड इवनिंग,
और गुड नाइट हो जाती है।
अग़र कभी यह मिस हो जाए,
तो दिल में बेचैनी - सी छाती है।
तेरी तस्वीर को प्रीतम, हम,
ईमेल, गूगल ड्राइव,और गैलरी में छुपाते हैं।
रोजाना साँझ-सवेरे इसे चूमते,
और सीने से लगाते है।
तुमको छूने से जीवन को मिलता आरोही क्रम,
तुम्हारे रूठ जाने से होने लगता अवरोही उपक्रम।
हम हैं जेठ की सुलगती अगन।
तुम हो मेरे भींगता हुआ सावन।
हमने किताबों-किस्सों में ही,
यही सुना है बार बार।
जो कुछ भी समझ में न आए,
क्या ऐसा ही होता है "प्यार"!
क्या यही है- प्यार !
क्या यही है - प्यार!
* *एकता कुमारी * *
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