मातृ दिवस एक मुखौटा

शीर्षक- मातृ दिवस का मुखौटा

मातृ दिवस का शुभ दिन था ,
फेसबुक स्टेटस चाहिए था ।
खरीदा केक एक और सौगात,
हाथ लिए बेटा चला था ।।

पहुँचा वृद्ध आश्रम माँ,
से मिलने आया है ।
किसी ने कहा माँ जी,
बेटा आपका पधारा है ।।

बूढ़ी हड्डियों में बहुत 
जान आ गई ।
गठिया वाले पैरों में भी ,
जवानी छा गई ।।

सुनकर वह संदेशा ,
बेतहाशा थी भागी ।
बेटा आएगा तू,
मैं ना रही अभागी ।।

पोती कैसी है मेरी लाडो?
अब तो ठुमकती होगी ।
रुनझुन- रुनझुन करती,
पूरे आँगन में दौड़ती होगी ।।

बहू रानी कैसी है ?
बतलाओ सबका हाल।
मेरे बिना मैं जानती हूँ,
सब होंगे बदहाल ।।

बिना रुके ,बिना सोचे ,
करती रही वह सवाल ।
बेटे को गले से लगाया,
भूल गई सब रंजीशें मलाल।।

झट से उठा बेटा ,बोला 
झूठी है सब तेरी आस ।
तेरे बकवास सुनने का,
वक्त नहीं है मेरे पास ।।

आज मातृ दिवस है ,
बस सबको जतलाना है ।
तुझसे प्यार कितना है,
दुनिया को बताना है ।।

एक दो- तीन फोटो खींचे,
मुस्कुराकर केक काटकर ।
गुलदस्ता दे, आशीर्वाद लेकर,
आदर्शवादी बेटा बनकर ।।


कहा माम मुस्कुराओ ना!
है बेटे की मान मर्यादा की बात ।
माँ तो बौराई , सकुचाई,
फिर से हुई शांत- अशांत ।।

सोचती मातृ दिवस का मुखौटा ,
उतार कर समझता कर्तव्य की बात।
भीगे नयन ,बोझिल तन,
सदमा ये कर ना सकी सहन ।।

मोह -बंधन सब त्याग ,
हो गई वह स्वतंत्र ।
फेसबुक के परिधि में ,
खुशियाँ बाँधता वो परतंत्र ।।

प्रेम कर्तव्य के निर्वाह
के लिए नहीं विवश?
क्यों करें फिर छलावा?
देवे दारुण दुख वृहद ।।

मातृत्व वात्सल्य में बद्ध कर
स्वच्छंदता जो अधीर थी ।
मोह माया की देहरी पर टूटी,
कर्तव्य संस्कार की प्राचीर थी ।।
क्रमश: ...
अंशु प्रिया अग्रवाल 

मस्कट ओमान

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