कभी चाँदनी सी धवल
कभी सुर्ख गुलाबों की लाली है ।
उतरती है मुझ में चाँदनी सी
सुकून शांति की कहानी है।।
वह मेरी प्रेमिका मेरी महबूबा कहलाती है ।
चहकती है वह धूप सी ,
चमकती है ओस बनकर ।
हिंदी सी सहज निश्चला है,
पर तेवर तीखे उर्दू वाली है ।।
वह मेरी प्रेमिका मेरी महबूबा कहलाती है ।
वह शांत ,मृदु ,उज्जवल सुबह सी,
बसंती बयार सी मतवाली है ।
फूलों से भी कोमल मन उसका,
नैनों में संपूर्ण जहां बसाती हैं ।।
वह मेरी प्रेमिका मेरी महबूबा कहलाती है ।
गुस्साती है काली घटा बन जाती ,
गरजती ,चमकती ,बरस जाती ।
करुण रस छलका जाती ,
अपनी एहसास जगा जाती।।
प्यासी प्रेमी की महबूबा कहलाती है ।
रूहानी है इश्क उसका ,
काली घटा सा उसका क्रोध ।
कांति, आभा, सूर्य के जैसी,
शीतल धवल चंद्रमा भी मौन ।।
वह मेरी प्रेमिका मेरी महबूबा कहलाती है ।
मुस्कान उसके होठों की ,
पतझड़ में सब रंग खिलें।
लहराते, इठलाते ,बलखाते केश
उर में मयूरा नृत्य करें ।।
वह मेरी प्रेमिका मेरी महबूबा कहलाती है ।
अंशु प्रिया अग्रवाल
मस्कत ओमान
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