आजाद थे सपूत जो भारत माँ के , बलि वेदी

आजाद
थे सपूत जो भारत माँ के , बलि वेदी अपनाई थी ।
था परतंत्र देश जब अपना , माँ की लाज बजाई थी ।।

क्रूर अंग्रेजों का आतंक आसमान पर था ,
लूट मार सम्पत्ति की चारों ओर छाई थी ।
फूट डाल राजाओं में राज्य हड़पने की नीति ,
विधर्मी  वितानियों ने बहुत अपनाई थी ।।
आजाद आया आसमान से बची बहुत शहनाई थी ।..........॥१॥

जगरानी जाग गई भावरा के भाग्य जगे ,
पंडित सीताराम सीताराम धुन गाई थी ।
भाल चन्द्रशेखर का विशाल चन्द्रशेखर सा ,
निडर सा नायक उसकी  लायक निपुनाई थी ।।
बन करके आजाद बनारस में ही अलख जगाई थी  ।..............॥२॥

नाम आजाद मेरा काम देश आजादी का ,
जज जी के समक्ष यह चतुरता दिखाई  थी ।
कोड़े कितने पड़ रहे चिन्ता इसकी कीन्ही नही ,
भारत माता की जय बड़े जोर से लगाई थी ।।
फूल बिछे मग माला पहनी जेल से हुई रिहाई थी ।................॥३॥

होरो और होरोइन के पीछे मत भागों प्यारे ,
देश भक्त राष्ट्र प्रेमी अपने आदर्श बनाइये ।
आज राष्ट्र उन्नति में बने जो सहायक साज ,
वाद्ययंत्र साथ   उनके यश गीत गाइये ।।
मक्खन मन में मोद मना रहे हिय प्रसन्नता छाई थी ।...............॥४॥

राजेश तिवारी "मक्खन"
झांसी उ प्र

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