हे मानव

हे मानव

हे मानव ,तू क्या मानव नहीं 
क्या मर गई तुम्हारे अंदर की मानवता ।

आज तू समझदार मानव होकर भी 
इन लाचार और बेबस इंसानों को पीट रहे हो ।

क्या तुम्हारी यही बौद्धिक स्तर है 
कैसे तुमने अपनी मानवता को मार दिया ।

 क्या इसकी दर्द तुमको महसूस नहीं होता 
क्या इसकी चीख तुम्हें सुनाई नहीं देता। 

 कैसे तुम्हारे भीतर  इतनी दरिंदगी भर गई 
कौन तुम्हें समझाए की ये जानवर नहीं मानव है।

 इसको मत मारो क्योंकि इसका घर इसी से चलता है
इसको मरने के बाद पूरा परिवार अनाथ हो जाएगा।

इन बेबस और लाचार इंसानों को पीटकर 
तुम अपनी कौन सी वीरता दिखा रहे हो ।

क्या तुम्हे सिर्फ अपनों का ही दर्द  महसूस होता है। 
इन लोगों का दर्द तुम्हे क्यों नहीं सुनाई देता है। 

तोड़ दो अपने अंदर इस गुलामी चेतना को 
जिंदा करो अपने अंदर की मानवता को 

अपने इंसानियत को जिंदा करो और दर्द को समझो 
मानव को पीटो नहीं बल्कि उसकी रक्षा करो। 
©रूपक

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