राम जी के नाव में बैठ चल दो उस पार।उनके अलावा कोई नही जो उतारेभव से पार।।

राम जी के नाव में बैठ चल दो उस पार।
उनके अलावा कोई नही जो उतारे
भव से पार।।

राम नाम के माला को, नित दिन बन्दे फेर।।
 अबतक आधा जीवन तो बित गया,ना जाने हो जाये कब अंधेर।।

यू तो भक्ति करे जोगी अनेको किन्तु, सबके अपने अपने भाव।
जा की रही भावना जैसी ता को तैसी गाँव।।

कोई करता चाकरी कोई करता जिससे अपने मन से बैर।
सबकों प्रभु पार लगाते किन्तु समझते नही शरण में आये को गैर।।

प्रेम जगत का आधार है
 निष भाव से ही करो प्रेम।
प्रेम करोगे तो बन जाओगे भक्त,
फिर व्याधेगा ना कोई ऐब।।

ज्ञान तो रस का खान है जितना हो सके तू घोल।
फेटने से बढ़ेगा ही,जितना हो सके बाँटने समय ना तू तोल।।

जिंदगी तो जैसे एक धरती है
मिलता सभी को समान।
किंतु मिलने वाले के ऊपर निर्भर है, कोई बोता बबुल तो कोई आम।।

प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ