गुमनाम राहों में ना जाने कितने पत्थर मिले,


गुमनाम राहों में ना जाने कितने पत्थर मिले,
कुछ बंद किताबें, कुछ खामोश अक्षर मिले ।
मैं पढ़ना चाहता था लिखी हर इबारत को ,
पर धूमिल सी यादों में सब खामोश रहा ।
मेरी जद्दोजेहद , मेरे किए प्रयत्न सभी ,
जाकर वक्त के पहियों से टकड़ा आया ।
है घटित होता रहा जो भी वही होना था,
ख्वाब कई आंखों में सजना , निखरना ,
और फिर ना जाने क्यों बस बिखर जाना था ।
गुमनाम राहों में ना जाने कितने पत्थर मिले,
कुछ बंद किताबें, कुछ ख़ामोश अक्षर मिले ॥
✒ जय कृष्ण कुमार 
भागलपुर, बिहार 
9162439176

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